गंगा में मिली साउथ US में की ये मछली, वैज्ञानिकों को सता रहा डर, इकोसिस्टम के लिए बता रहे खतरा

वाराणसी. भारत से हजारों की किलोमीटर की दूरी पर स्थित साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में पाई जाने वाली सकर माउथ कैटफिश का वाराणसी की गंगा नदी में मिलना काफी ज्यादा शॉक्ड कर देने वाला है। इस मछली ने वैज्ञानिकों की चिंता को बढ़ा दिया है। 
 

Asianet News Hindi | Published : Sep 26, 2020 5:30 AM IST

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गंगा में मिली साउथ US में की ये मछली, वैज्ञानिकों को सता रहा डर, इकोसिस्टम के लिए बता रहे खतरा

वाराणसी में रामनगर के रमना से होकर गुजरती गंगा नदी में नाविकों को अजीबोगरीब मछली मिली है। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि बीएचयू के मछली वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान साउथ अमेरिका की अमेजॉन नदी में पाए जाने वाली सकरमाउथ कैटफिश के रूप में की है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है और कहा है कि यह मछली मांसाहारी है और अपने इकोसिस्टम के लिए खतरा भी है।

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कहा जाता है कि नदियों ने अपनी गहराई में ना जाने कितने राज्य और रहस्य को छुपा रखा है, लेकिन वाराणसी के रामनगर के रमना गांव नदी में डॉल्फिन के संरक्षण और बचाव के लिए लगी गंगा प्रहरियों की टीम को उस वक्त एक मछली के रूप में अजूबा हाथ लगा जो गंगा नदी ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान और साउथ एशिया तक में भी नहीं मिलती है।

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बताया जा रहा है कि अजीब से मुंह वाली ये मछली साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में पाई जाने वाली सकरमाउथ कैटफिश की तरह लग रही थी। भारतीय वन्य जीव संस्थान और नमामि गंगे योजना से जुड़े जलीय जीव संरक्षण के लिए काम करने वाले गंगा प्रहरी दर्शन निषाद के हवाले से रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि डॉल्फिन के संरक्षण के दौरान ही उनको दूसरी बार यह अजीब मछली मिली है। पहली बार गोल्डन रंग की मछली मिली थी, जिसकी पहचान भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अमेरिका की अमेजॉन नदी में पाए जाने वाले सकरमाउथ कैटफिश के रूप में की थी, एक बार फिर यह मछली मिली है।
 

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रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र  का यह मछली विनाश कर सकती है। वैज्ञानिकों ने सलाह भी दी कि इस मछली को गंगा में पाए जाने पर फिर से ना छोड़ा जाए। अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर हजारों किलोमीटर दूर साउथ अमेरिका के अमेजॉन नदी में पाई जाने वाली सकरमाउथ कैटफिश आखिर गंगा नदी तक कैसे पहुंची?

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इस सवाल के जवाब में बीएचयू के जंतु विज्ञान के वैज्ञानिकों ने दिया। मछली वैज्ञानिक प्रोफेसर बेचनलाल के हवाले से बताया जा रहा है कि यह मछली साउथ अमेरिका में पाई जाती है, जिसे सकरमाउथ कैटफिश कहा जाता है। सकरमाउथ कैटफिश कई रंगों में भी मिल सकती है, लेकिन इसका गंगा में मिलना गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। 

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प्रोफेसर इसे खतरा इसलिए बताते हैं क्योंकि यह मछली मांसाहारी है और आसपास के जीव-जंतुओं को खाकर जिंदा रहती है। इस वजह से यह किसी महत्वपूर्ण मछली या जीव को पनपने नहीं देती है जबकि इस मछली की खुद की फूड वैल्यू कुछ नहीं है क्योंकि यह बेस्वाद होती है।
 

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इस लिहाज से यह गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बड़ा खतरा माना जा रहा है। अब गंगा जैसी प्रवाह वाली नदी में मिलने के बाद इसके बढ़ाव को रोका भी नहीं जा सकता है। क्योंकि यह मछली अपनी खूबसूरती के चलते आर्नामेंटल मछलियों की श्रेणी में आती है और लोग शौकवश इसे एक्वेरियम में पालते हैं लेकिन कैटफिश के बड़ा होने पर इसे गंगा में छोड़ देते हैं। ऐसा करना ही बताया जा रहा है कि अब काफी गलत परिणाम लेकर आ रहा है।

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