पार्थ अंदर से कुछ, बाहर से कुछ और :
पार्थ के दो चेहरे हैं। वो बाहर से कुछ और दिखते हैं, जबकि अंदर कुछ और होते हैं। वो जिस साफ छवि की बात करते थे, वो कई बार सोचने पर मजबूर करती थी। मुझे उनके हर कदम पर भ्रष्टाचार मिला। वो बस दिखावे के लिए ऐसा करते थे जैसे फौरन कदम उठा रहे हैं, लेकिन ये चीज बस सतही होती थी। हकीकत कुछ और ही थी।