कच्चे घर में गुजरी जिंदगी, जानिए कैसे तांगेवाले की बेटी बनी हॉकी की ‘जादूगरनी’

नई दिल्ली. देश में आज भी महिलाओं को कम आंका जाता है। खेल, बिजनेस जैसे क्षेत्र में महिलाओं को कदम रखने लायक नहीं समझा जाता है। बावजूद इसके जो भी महिलाएं ये कर गुजरती हैं वो कमाल कर जाती हैं। समाज और दकियानूसी सोच दोनों पर तमाचा मार ये महिला कामयाबी की मिसाल पेश करती हैं। ऐसी ही एक महिला हैं नाम है रानी रामपाल। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने वर्ल्ड 'गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार जीता है। महिला हॉकी में ये नाम सुप्रसिद्ध है। रानी भारतीय महिला हॉकी टीम की क्वीन हैं और दुनिया में अपने हुनर और लीडरशीप का लोहा मनवा चुकी हैं। पर बहुत कम लोग ही रानी के संघर्ष की कहानी जानते हैं। हरियाणा के एक छोटे से गांव में जन्मी रानी का बचपन कच्चे घर में गुजरा है, उन्होंने गरीबी झेली है और रिश्तेदारों और समाज के ताने भी।
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 5, 2020 1:20 PM IST / Updated: Feb 05 2020, 06:51 PM IST

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कच्चे घर में गुजरी जिंदगी, जानिए कैसे तांगेवाले की बेटी बनी हॉकी की ‘जादूगरनी’
वरिष्ठ राष्ट्रीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी राम पाल ने हाल में पहली हॉकी प्लेयर के तौर पर वर्ल्ड गेमस एथलिट ऑफ 2019 का खिताब अपने नाम किया है। ऐसे में हम आपको रानी के संघर्ष की कहानी बता रहे हैं। रानी ने बताया, “मैं ऐसी जगह पर पली- बढ़ी हूं, जहां महिलाओं और लड़कियों को घर की चारदीवारी में रखा जाता है। इसलिए जब मैंने हॉकी खेलने की इच्छा ज़ाहिर की, तो मेरे माता-पिता और रिश्तेदारों ने साथ नहीं दिया।
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मेरे माता-पिता बहुत छोटी जगह से हैं और ज़्यादा पढ़े- लिखे भी नहीं हैं। उन्हें लगता था कि स्पोर्ट्स में करियर नहीं बन सकता, और लड़कियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। साथ ही, हमारे रिश्तेदार भी मेरे पिता को ताने देते थे, ‘ये हॉकी खेल कर क्या करेगी? बस छोटी-छोटी स्कर्ट पहन कर मैदान में दौड़ेगी और घर की इज्ज़त ख़राब करेगी।’” उस समय ये सब सुनकर मैं भीतर कर हिल जाती थी। डर लगता था कि कभी हॉकी नहीं खेल पाउंगी। आज वही लोग रान की पीठ थपथपाते हैं और उनके घर लौटने पर, ख़ासतौर से बधाई देने आते हैं। (परिवार के साथ रानी)
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रानी बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं। घर चलाने के लिए, उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे। पर पांच लोगों के परिवार के लिए यह बहुत कम था। उन्हें आज भी याद हैं कि कैसे तेज़ बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था और वे अपने दोनों भाइयों के साथ मिल कर, बारिश के रुकने की प्रार्थना करती थीं। बर्तनों में पानी भरकर उलचते थे। गड्डे भरते थे।
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रानी बताती हैं कि, “मुझे हमेशा से पता था कि मुझे हॉकी खेलना है। पर इसके जो खर्च थे– जैसे इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेना, हॉकी किट खरीदना या जूते खरीदना आदि, ये सब मेरे पिता नहीं उठा सकते थे। साथ ही, मेरे माता-पिता को समाज का भी डर था, जिसके कारण उन्हें मनाना और भी मुश्किल था। मुझे याद है, मैंने उनसे बहुत बार कहा, ‘मुझे एक मौका दो, मुझे खेलते हुए देखो, और फिर भी, अगर आपको लगे कि मैं कुछ गलत कर रही हूँ, तो मैं खेल छोड़ दूंगी।” (कोच के साथ रानी रामपाल)
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फिर रानी के पिता मान गए और वो शाहाबाद अपने कोच सरदार बलदेव सिंह की शरण में आ गईं। गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित कोच रानी के साथ डटकर हर मुश्किल समय में खड़े रहे। रानी ने इनकी देख-रेख में ही हॉकी अकादमी में अपनी ट्रेनिंग की शुरुआत की थी।“उन्होंने उस समय मेरा और मेरे हॉकी के सपने का साथ दिया, जब कोई और मेरे साथ नहीं था। मुझे हॉकी किट देने से लेकर, मेरे लिए जूते खरीदने तक; हर तरह से उन्होंने मेरी मदद की। जब मैंने एक मैच में बहुत मुश्किल गोल किया था, तब उन्होंने मुझे एक 10 रूपये का नोट दिया और उस पर लिखा, ‘तुम देश का भविष्य हो।’ यह मेरी सबसे अनमोल यादों में से एक है। मैंने उस नोट को बचा कर रखने की बहुत कोशिश की, पर उस वक़्त हम इतने गरीब थे, कि मुझे उस नोट को खर्च करना पड़ा।”
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जब वे चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ले रही थी, तब उनके कोच बलदेव ने उनके रहने की व्यवस्था अपने ही घर पर करवाई। साथ ही, अपनी पत्नी के साथ मिलकर, रानी के अच्छे खान- पान की ज़िम्मेदारी भी ली। “हॉकी से ज़्यादा, उन्होंने हमे एक-दूसरे की मदद करना सिखाया। ऐसे नए खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करना, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। किट या किसी अन्य ज़रूरतों को पूरा करके, उनकी मदद करना। हमारी अकादमी में आज भी यह सिलसिला जारी है।”
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भारतीय हॉकी टीम में उनका चयन बिल्कुल भी आसान नहीं था, बल्कि यह बहुत बड़ी चुनौती थी। “हर मौसम में ट्रेनिंग मुश्किल हो जाती थी। और अनुशासन, पहला नियम था, जो हमें सिखाया गया। हम घंटो ट्रेनिंग लेते थे और एक दिन भी ट्रेनिंग नहीं छोड़ते थे। पर समय की पाबन्दी प्राथमिकता होती थी। हम कभी देर से जाते, तो हमारे कोच हमें सज़ा देते थे।”
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जून 2009 में, रूस में आयोजित हुए चैंपियन चैलेंज टूर्नामेंट में रानी ने फाइनल मैच में चार गोल किये और ‘द टॉप गोल स्कोरर’ और ‘यंग प्लेयर ऑफ़ टूर्नामेंट’ का ख़िताब जीता। उन्होंने साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया, जहाँ वे एफ़आईएच के ‘यंग वुमन प्लेयर ऑफ़ द इयर’ अवॉर्ड के लिए भी नामांकित हुई।
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ग्वांगझोउ में हुए 2010 के एशियाई खेलो में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते, उन्हें ‘एशियाई हॉकी महासंघ’ की ‘ऑल स्टार टीम’ का हिस्सा बनाया गया। अर्जेंटीना में आयोजित महिला हॉकी विश्व कप में, उन्होंने सात गोल किये और भारत को विश्व महिला हॉकी रैंकिंग में सांतवे पायदान पर ला खड़ा किया।
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साल 1978 के बाद, ये भारत की हॉकी टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जाता है और इस शानदार प्रदर्शन के लिए रानी ने ‘बेस्ट यंग प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ जीता। साल 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और पहली बार, भारत कांस्य पदक जीता। यहां भी उन्हें ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ का खिताब मिला। साल 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
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उनकी कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में एशियाई खेलों में रजक पदक जीता और इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा है। पर आज जब भी उनसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछा जाता है, तो वेउनकी कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में एशियाई खेलों में रजक पदक जीता और इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा है। पर आज जब भी उनसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछा जाता है, तो वे बड़ी ही सादगी से बताती हैं, “महिला हॉकी टीम का नेतृत्व करना सबसे बड़ा सम्मान है।”बड़ी ही सादगी से बताती हैं, “महिला हॉकी टीम का नेतृत्व करना सबसे बड़ा सम्मान है।”
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रानी कहती हैं कि हॉकी को और अधिक पहचान और समर्थन की ज़रूरत है, केवल हॉकी ही नहीं, बल्कि बैडमिंटन, कुश्ती या वेट लिफ्टिंग, महिलाएं हर खेल में आगे बढ़ रही हैं और रानी का मानना है कि यह ट्रेंड जारी रहना चाहिए। जब रानी ने हॉकी में अपनी शुरुआत की, तब उन्हें नहीं लगा था कि वे कभी राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन पाएंगी या भारतीय खेल प्राधिकरण के लिए सहायक कोच के तौर पर नौकरी करेंगी। उनका सपना तो बस अपने परिवार के लिए एक घर बनाने का था। उन्होंने पैसा कमाकर अपने गरीब मां-बाप को सहारा दिया और शाहाबाद में एक बड़ा सा घर बनाया। साल 2016 में अपने परिवार के लिए उन्होंने यह घर बनवाया और साथ ही, घर की छत पर ओलिंपिक के पांच रिंग भी बने हुए हैं। रानी हरियाणा की नहीं बल्कि देश की शान हैं लड़कियों के लिए वे एक बड़ी प्रेरणा हैं।
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