ग्रेजुएशन करने के बाद किसान की बेटी को आया एक आइडिया और खड़ा कर दिया एक ब्रांड

सोलन, हिमाचल प्रदेश. कोरोना काल में नौकरियों पर संकट है। लाखों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। युवाओं को समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया था। इसका मकसद युवाओं को अपने हुनर या आइडियाज के हिसाब से अपने रोजगार के रास्ते तलाशने की दिशा में प्रेरित करना था। इसी दिशा में काम करते हुए सोलन की रितिका ने खुद का ब्रांड खड़ा कर दिया। वे सोलन में ही प्राकृतिक जल स्त्रोतों से पानी लेकर आधुनिक तकनीक से पर्यावरण के अनुकूल एल्युमिनियम की बोतलों में उसे पैक करती हैं। उनका यह उत्पाद काफी सराहा जा रहा है। रितिका के पिता किसान हैं। एमकॉम करने के बाद रितिका ने नौकरी करने के बजाय खुद का रोजगार शुरू करने की ठानी और आज वे सफल हो चुकी हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Sep 19, 2020 9:15 AM IST / Updated: Sep 19 2020, 02:48 PM IST
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ग्रेजुएशन करने के बाद किसान की बेटी को आया एक आइडिया और खड़ा कर दिया एक ब्रांड

रितिका बताती हैं कि वे हमेशा से ही अपना कुछ काम करना चाहती थीं। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने रिसर्च किया और फिर मिनरल वॉटर प्लांट डालने का मन बनाया। आगे पढ़िए इसी कहानी के बारे में...,
 

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रितिका बताती हैं कि वे जिस एल्युमिनियम बोतल में पानी पैक कर रही हैं, उसे रिसाइकिल किया जा सकता है। इससे पर्यावरण खराब नहीं होगा। इसकी लागत इतनी कम है कि विक्रेताओं को दोगुना मुनाफा होगा।

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चाईबासा, झारखंड. चाईबासा के खूंटपानी ब्लॉक के रांगामाटी गांव के किसान राम जोंको के खेत में लाखों रुपए के पपीते उगे हुए हैं। राम जोंको ने अपने खेत में 800 पपीते के पेड़ लगाए हुए हैं। इन पर 8-10 लाख रुपए के फल लगे हुए हैं। बता दें कि लॉकडाउन में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। राम जोंको भी पहले अपने काम-धंधे को लेकर चिंतित थे। फिर उन्होंने आत्मनिर्भर होने की ठानी। 4 महीने पहले उन्होंने खेत में पपीते के पेड़ लगाए और आज 50 टन पपीते की उपज तैयार कर ली।

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जबलपुर, मध्य प्रदेश. वंदना अग्रवाल और उनकी ननद डॉ. मोनिका अग्रवाल ने 12 साल के अंदर अपना काम-धंधा ऐसा जमाया कि आज इनका सालाना टर्न ओवर करीब 2 करोड़ रुपए है। भाभी-ननद मिलकर डेयरी चलाती हैं। उनकी डेयरी टोटली हाईटेक है। डिलीवरी, पेमेंट से लेकर मेंटेनेंस तक सभी हाईटेक है। ये 400 घरों तक दूध और पनीर, खोया आदि की डिमांड पूरी करती हैं। 44 वर्षीय वंदना एनवायरमेंटल साइंस से मास्टर्स हैं। वहीं, 36 वर्षीय मोनिका वेटनरी डॉक्टर। ये दोनों चाहतीं, तो कोई अच्छी-सी जॉब कर सकती थीं, लेकिन इन्होंने खुद का कुछ करने का ठानी और आज जबलपुर की नामचीन डेयरी चलाती हैं।

आगे पढ़ें- फसलों को कीटों और रोगों से बचाने किसान ने देसी जुगाड़ से निकाली यह तरकीब

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झाबुआ, मध्य प्रदेश. मौसम की मार से अकसर फसलों को नुकसान पहुंचता है। कभी कीट-पतंगे, तो कभी अन्य रोग लगने से फसलें खराब हो जाती हैं। झाबुआ के रहने वाले युवा किसान मनीष सुंदरलाल पाटीदार खुद भी इसके भुक्तभोगी रहे हैं। फिर उन्होंने देसी जुगाड़ (desee jugaad)  से अपनी फसलों को सुरक्षा की चादर ओढ़ दी। किसान ने अपने खेतों को करीब 400 साड़ियों से ढंक दिया है। इससे फसलों का बचाव हो रहा है। सुंदरलाल का कहना है कि उनका यह प्रयोग सफल रहा है। अब फसलें 100 प्रतिशत सुरक्षित हैं। उनकी पैदावार (production) भी बढ़ गई है। सुंदरलाल अपने खेतों में हाईब्रिज मिर्च उगाते हैं। उनका यह प्रयोग दूसर किसानों को भी पसंद आ रहा है।

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