दरअसल, कामयाबी की यह कहानी ओडिशा के संबलपुर जिले के रहने वाले 35 साल के इसाक मुंडा की है। जो कि आदिवासी इलाके में बाबूपालि गांव में एक झोपड़े में अपनी पत्नी, दो बच्चियों और एक बच्चे के साथ रहता था। वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मजदूरी करके परिवार का पेट पालता था। लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से उसकी नौकरी चल गई। घर में खाली बैठने और काम नहीं मिलने से परिवार के भूखे मरने की नौबत आ गई।