Lohri 2022 : त्योहार एक, नाम अनेक..जानिए देश के अलग-अलग राज्यों में कैसे मनाई जाती है लोहड़ी..

चंडीगढ़ : मौसम में बदलाव, उमंग और उत्साह के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाला लोहड़ी त्योहार (Lohri 2022) देश के अलग-अलग हिस्सों में खास तरीके से मनाया जाता है। पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत के अलग-अलग हिस्सों में जनवरी के महीने में यह त्योहार मनाया जाता है। कहीं इसे लोहड़ी कहते हैं तो कहीं पोंगल, कहीं बिहू तो कहीं खिचड़ी और मकर संक्रांति ये त्योहार इस मौसम में तैयार होने वाली अच्छी फसल की खुशी में मनाए जाते हैं। ये त्योहार अलग-अलग परंपराओं को भी मान्यता देता है। तो आइए जानते हैं क‍ि अलग-अलग रीत‍ि-र‍िवाज से सजा यह पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाया जाता है..

Asianet News Hindi | Published : Jan 10, 2022 4:12 PM IST / Updated: Jan 10 2022, 09:43 PM IST
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Lohri 2022 : त्योहार एक, नाम अनेक..जानिए देश के अलग-अलग राज्यों में कैसे मनाई जाती है लोहड़ी..

पंजाब और हरियाणा
पंजाब (Punjab) और हरियाणा (Haryana) के साथ-साथ बिहार (Bihar) और तमिलनाडु (Tamil Nadu) में यह समय फसल काटने का होता है। इसलिए किसानों के लिए यह पर्व एक खास महत्व रखता है। पंजाब में इस पर्व को लोहड़ी कहकर पुकारा जाता है। 14 जनवरी की पूर्व संध्या पर लोग खुले स्थान में आग जलाते हैं और परिवार और आस−पड़ोस के लोग उसकी परिक्रमा करते  हैं। अग्नि की परिक्रमा करते हुए रेवड़ी और अन्य फसलों के भुने दानों को उसमें भेंट करते हैं। उसके चारो ओर नाचते-गाते हैं, साथ ही रेवड़ी, गजक, चिक्की, मूंगफली और पॉपकॉर्न खाते हैं। इनमें वही सारी चीजें इस्तेमाल की जाती हैं जो मौसम की फसल से मिलती हैं।

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महाराष्ट्र 
महाराष्ट्र (Maharashtra) में इसे मकर संक्रांति के रुप में मनाते हैं। इस दिन दान किया जाता है। खासतौर से, विवाहित महिलाएं अपनी पहली मकर संक्रांति पर कपास, तेल, नमक, गुड़, तिल, रोली जैसी चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। महाराष्ट्र में इस त्योहार पर तिल की पोली खाई जाती है। गेहूं के आटें में तिल और गुड़ का मिश्रण बनाकर भरा जाता है। माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल−तिल बढ़ती है और इसलिए लोग इस दिन एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं। इतना ही नहीं, तिल गुड़ देते समय वाणी में मधुरता और मिठास की कामना भी की जाती है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे।

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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मकर संक्रांति को दान का पर्व कहा जाता है। इसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इसी दिन से यानी कि 14 जनवरी से पृथ्‍वी पर अच्‍छे दिनों की शुरुआत होती है और शुभ कार्य किए जा सकते हैं। संक्रांति के दिन स्‍नान के बाद दान देने की परंपरा है। गंगा घाटों पर मेलों का भी आयोजन होता है। पूरे प्रदेश में इसे खिचड़ी के नाम से जानते हैं। प्रदेश में इस दिन हर जगह आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगें लहराती हुई नजर आती हैं।

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बिहार
बिहार (Bihar) में इस पर्व को खिचड़ी के ही नाम से जानते हैं। यहां भी उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्‍त्र दान करने की परंपरा है। गंगा स्नान के बाद यहां दान दिया जाता है। लोग इस दिन घरों में खिचड़ी बनाते हैं। 

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राजस्थान
राजस्थान (Rajasthan) में भी इसे मकर संक्रांति के तौर पर मनाया जाता है। यह पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपनी सास को मिठाईयां और फल देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही इस दिन महिलाओं द्वारा किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का 14 की संख्या में पूजन और संकल्प कर 14 ब्राह्मणों को दान देने की भी प्रथा है।

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गुजरात
गुजरात (Gujarat) में लोहड़ी और मकर संक्रांति को उत्तरायण कहकर पुकारा जाता है। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा है। इतना ही नहीं, यहां मकर संक्रांति के पर्व पर पंतगोत्सव का भी आयेाजन किया जाता है। गुजराती लोगों के लिए यह एक बेहद शुभ दिन है और इसलिए किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत के लिए इसे सबसे उचित दिन माना जाता है।

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पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल (West Bengal) में इस पर्व पर गंगा सागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। यहां इस पर्व के दिन स्‍नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्‍ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं। यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ होती है।
 

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उत्तराखंड
उत्तराखंड (Uttarakhand) में इस दिन जगह−जगह मेले लगाए जाते हैं। इसके साथ ही लोग गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान जैसे खाने के सामान  को ब्राह्मणों और पूज्य व्यक्तियों को दान करते हैं। उनका आशीर्वाद लेते हैं।

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तमिलनाडु
तमिलनाडु में इस त्योहार को बेहद अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर लोग इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। यह एक चार दिवसीय अवसर है। जिसमें पहले दिन भोगी−पोंगल, दूसरे दिन सूर्य−पोंगल, तीसरे दिन मट्टू−पोंगल या केनू−पोंगल, चौथे और अंतिम दिन कन्या−पोंगल मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिए सबसे पहले स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहा जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और अंत में उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

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आंध्र प्रदेश 
आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) में इस दिन पतंगें उड़ती हैं, रंगोली से घर सजते हैं और सांड और मुर्गों की लड़ाई होती है। तीन दिन का त्योहार भोगी से शुरू होता है जिसमें समुदाय के लोग घरों की गंदगी निकालकर सड़क पर इकट्ठा करते हैं और फिर उसका अलाव जलाते हैं। आंध्र-प्रदेश में इस दिन दूध में चावल मिलाकर पोंगली नाम का व्यंजन बनाया जाता है। यहां जानवरों को इस दिन सजाया जाता है और उनकी रेस कराई जाती है।

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