ऐसी भी बेबसी..मां बेटी के पास एक ही जोड़ी चप्पल, जिसे बदल-बदल कर पहनती..अभी 750 किमी दूर है गांव


अजमेर (राजस्थान). लॉकडाउन में ना तो मजदूरों की घर वापसी थम रही है न उनसे जुड़ी दर्द और दुख की कहानियां। कोरोना के खौफ में भूख और बेबसी मजदूरों की जान पर भारी पड़ रही है। आप देश के किसी भी हाईवे पर जाकर देख लीजिए वहां पर आपको लाचार और बेबस श्रमिक पैदल चलते हुए दिखाई देंगे। जिनके सिर पर भारी-भरकम वजन और आंखों में घर जाने के सपने होंगे। घर जाने की जिद में उनको तीखी धूप भी सुकून दे रही है। ऐसी एक दर्दभरी कहानी राजस्थान से सामने आई है, जिसको पढ़कर आप भी भावुक हो जाएंगे।

Asianet News Hindi | Published : May 17, 2020 9:32 AM IST / Updated: May 17 2020, 03:37 PM IST

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ऐसी भी बेबसी..मां बेटी के पास एक ही जोड़ी चप्पल, जिसे बदल-बदल कर पहनती..अभी 750 किमी दूर है गांव

दरअसल, तस्वीर में दिखाई दे रही यह महिला अपनी बेटी के साथ अजमेर से एमपी के पन्ना जाने के लिए 750 किमी लंबे सफर पर निकल पड़ी हैं। इन मां-बेटी के पास एक ही जोड़ी चप्पल है, जिसे वे बदल-बदल कर दोनों पहनती रहती हैं। इतना ही नहीं वो चप्पल टूटने के डर से वे कई किमी चप्पल को हाथ में लेकर भी चलती हैं। मीलों के सफर पर निकले इन मजदूरों की बस एक ही तमन्ना है किसी तरह अपने गांव पहुंच जाएं।

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यह तस्वीर भीलवाड़ा से सामने आई  है। जहां मजदूर सुरेश और उसकी पत्नी 15 दिन पहले अहमदाबाद से साइकिल रिक्शा लेकर गांव जाने के लिए निकल पड़े हैं। युवक गुजरात में इसी रिक्शे पर लोगों का सामान ढोकर अपना गुजर-बसर कर रहा था, लेकिन लॉकडाउन के चलते जब सब बंद होग गया तो वह अपने आने के लिए इसी साइकिल के सहारे चल पड़े।

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दिल दहला देने वाली यह तस्वीर माऊंट आबू से सामने आई है। जहां कुछ दिन पहले यूपी के बलरामपुर से माऊंट आबू घूमने आए बलरामसिंह यादव अपने दोस्तों के साथ आए थे, लेकिन लॉकडाउन में फंस गए।बलराम ने कभी नहीं सोचा था कि वह यादों में इस तरह का दर्द लेकर वापस जाएगा। उसके पैरे में छाले पड़ गए हैं। जब उसके पैरों से खून रिसने लगा तो उसने अपनी शर्ट को फाड़कर तलवे में पट्टी बांध ली।
 

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यह तस्वीर राजस्थान के दौसा बॉर्डर से सामने देखने को मिली है। जहां एक महिला अपने मासूम बेटे को गोद में लेकर घर जाने के लिए निकल पड़ी है।
 

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बेबसी की यह तस्वीर पुष्कर शहर से सामने आई है। जहां एक पिता अपने तीन बच्चों को साथ लेकर 10 दिन पहले पुणे के एक से निकला है। जब वह पानी पीने के लिए पुष्कर में रुका तो पुलिसवालों ने  देवदूत के बनकर उसकी मदद की और खाना खिलाया।
 

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यह तस्वीर जोधपुर से सामने आई है, जहां मजदूर अपने गांव के लिए सिर पर वजन रख कर निकल पड़े हैं। किसी ने जूते-चप्पल पहन रखे हैं तो कोई नंग पर ही दिख रहा है। उनके पैरों में छाले हैं, पेट खाली हैं, पर आंखों में मंजिल तक पहुंचने की एक उम्मीद है।

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