650 साल पुराने इस मंदिर में अगर सफेद चूहा दिख जाए, तो समझो आपकी किस्मत बदल गई
बीकानेर.आमतौर पर चूहों को घर में देखकर ही लोगों की टेंशन बढ़ जाती है। उन्हें भगाने-मारने के इंतजाम होने लगते हैं। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। लोग बड़े प्यार से चूहों को दूध पिलाते हैं, चीजें खिलाते हैं। यही नहीं उनका जूठन खाना पुण्य मानते हैं। हम बात कर रहे हैं बीकानेर से करीब 30 किमी दूर स्थित प्रसिद्ध करणी देवी मंदिर के बारे में। इसे चूहों का मंदिर भी कहते हैं। दावा है कि इस मंदिर में 100-200 नहीं, हजारों चूहे रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। मंदिर में चढ़ाए जा रहे दूध और अन्य प्रसाद को चूहों का झुंड आकर खाता रहता है। चूहों के जूठे इसी प्रसाद को देवी के भक्त खाते हैं।
देशनोक में स्थित करणी मंदिर में माता करणी की मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में हजारों चूहे घूमते रहते हैं। वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। जैसे ही आप दरवाजे पर कदम रखेंगे, आपका सामना हजारों चूहों से होने लगेगा। नवरात्र के मौके पर श्रद्धालुओं की संख्या के अनुपात में चूहों की संख्या भी बढ़ जाती है।
मां करणी को जगदंबा का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि करीब 650 साल पहले यहां गुफा हुआ करती थी। इसमें मां करणी मां जगदंबा की स्तुति करती थीं। कहते हैं कि मां करणी की इच्छा के बाद ही यहां उनकी मूर्ति स्थापित की गई।
करणी मंदिर का निर्माण 20वीं शताब्दी में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने कराया था। मां करणी इस राजघराने की कुलदेवी हैं। करणी देवी चारण परिवार में जन्मी थीं। लेकिन शादी के बाद सांसारिक जीवन से उनका मोहभग्न हो गया। इसके बाद वे मां जगदंबा की भक्ति में डूब गईं। बताते हैं कि करणी देवी 151 साल जीवित रहीं।
मौजूदा मंदिर संगमरमर से बना हुआ है। अंदर जहां करणी देवी की मूर्ति विराजी है, वहां का दरवाजा चांदी का है। छत पर सोने की परत चढ़ाई गई है। मंदिर राजस्थानी वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
मंदिर में चांदी की एक बड़ी परात(बर्तन) रखी हुई है। इसमें चूहों के लिए दूध और अन्य प्रसाद भरा जाता है। चूहे बगैर किसी को नुकसान पहुंचाए इसमें से अपना भोजन करते रहते हैं। इसी प्रसाद को लोग उठाकर खाते हैं।