कौन है 93 साल की पहली भारतीय महिला, जिन्होंने अपना शरीर कोविड रिसर्च के लिए दिया दान

टेंड्रिंग डेस्क : पूरी दुनिया में कोविड-19 (Covid-19) को काबू करने के लिए तमाम तरह की रिसर्च की जा रही हैं। कभी जानवरों, तो कभी अलग-अलग चीजों पर इसका ट्रायल किया गया है, लेकिन अभी तक कोरोना मरीज की बॉडी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है, इसपर रिसर्च में कुछ सामने नहीं आया है। इसी कड़ी में 93 साल की बुजुर्ग महिला ने सरहानीय पहल करते हुए अपना शरीर रिसर्च करने के लिए दान कर दिया है। कोलकाता की 93 साल की ज्योत्सना बोस (Jyotsna Bose) ने अपनी बॉडी को कोविड पर मेडिकल रिचर्स के लिए डोनेट किया है। ऐसा करने वाली वो भारत की पहली महिला बनी हैं। आइए आज आपको मिलवाते हैं भारत की इस महान लेडी से...
 

Asianet News Hindi | Published : May 21, 2021 10:16 AM IST / Updated: May 21 2021, 05:20 PM IST
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कौन है 93 साल की पहली भारतीय महिला, जिन्होंने अपना शरीर कोविड रिसर्च के लिए दिया दान

कौन हैं ज्योत्सना बोस
92 वर्षीय ज्योत्सना बोस ट्रेड यूनियन नेता थी। जिनका जन्म 1927 में चिटगांव में हुआ था, जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है। पिछले दिनों कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद उन्होंने अपना शरीर दान करने का फैसला लिया था। 

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2 दिन अस्पताल में चला इलाज
ज्योत्सना बोस की पोती डॉ तिस्ता बसु ने बताया कि 14 मई को उत्तरी कोलकाता के बेलियाघाटा इलाके के एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया था। जहां 2 दिन कोविड वॉर्ड में उनका इलाज चला, लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गई।

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जाते-जाते किया सहराहनीय काम
अपनी मौत से पहले ही उन्होंने अपनी बॉडी कोरोना की रिसर्च के लिए दान करने का निर्णय ले लिया था। उनकी मौत के बाद उनकी ऑटोप्सी RG Kar Medical College and Hospital में की गई। जहां डॉक्टर बसु ने बताया कि 'हम आज तक कोरोना वायरस के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते हैं। हमें यह जानने की जरूरत है कि कोरोना वायरस मानव अंगों और मानव प्रणालियों को किस तरह प्रभावित करता है। पेथोलॉजिकल ऑटोप्सी इस सवाल का बहुत हद तक जवाब दे सकती है।'

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ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला हैं ज्योत्सना
कोविड रिचर्स के लिए अपना शरीर दान करने वाली ज्योत्सना बोस भारत की पहली महिला हैं। हालांकि, उनसे पहले पश्चिम बंगाल के ही रहने वाले ब्रोजो रॉय ने अपना शरीर रिचर्स के लिए दान किया था। वहीं, डॉ. विश्वजीत चक्रवर्ती का शव भी रिचर्स के लिये दान किया गया है।

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संघर्ष भरा रहा था ज्योत्सना का जीवन
अपनी दादी के बारे में बताते हुए डॉ तिस्ता बसु ने बताया कि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बर्मा से लौटते समय ज्योत्सना के पिता लापता हो गए थे और उस समय उनके परिवार का हालात बहुत खराब थी। हालांकि, वह अपनी पढ़ाई पूरी करने में विफल रही और उसने ब्रिटिश टेलीफोन में एक ऑपरेटर के रूप में नौकरी की। ज्योत्सना बोस कुछ ही समय बाद ट्रेड यूनियन आंदोलन में शामिल हो गईं, और नौसेना विद्रोह के समर्थन में 1946 की पोस्ट और टेलीग्राफ हड़ताल में भी भाग लिया।

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समाज सेवा में हमेशा रहीं आगे
उनकी पोती ने बताया कि, उनकी दादी ने ट्रेड यूनियनिस्ट मोनी गोपाल बसु से शादी की और रिटायरमेंट के बाद भी खुद को सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में बिजी रखा। जाते-जाते भी वह समाज के लिए अच्छा काम करके गईं।

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