कोरोना से तबाह हुआ ये परिवार, माता-पिता,दादा-दादी की मौत से अनाथ हुए 3 बच्चे, घर का मुखिया बना 13 साल का बच्चा

शामली (Uttar Pradesh) । कोरोना काल में ना जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो गई। लेकिन, इस वायरस ने लिसाढ गांव में एक हंसते-खेलते परिवार को गमों के समंदर में डूबो गया। जी हां यहां एक परिवार में अब सबसे बड़ा सदस्य 13 साल का लड़का बचा है, जिसके समझ में नहीं आ रहा आखिर वो करें तो क्या करें। जिसे देख गांव के लोगों की भी आंखें नम हो जाती हैं। हालांकि शासन ने कोरोना के कारण परिवार में कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु होने या माता-पिता दोनों की मृत्यु पर बच्चों को शिक्षा एवं अन्य सुविधाएं देने के साथ ही नकद धनराशि देने की घोषणा की है। 

Asianet News Hindi | Published : May 31, 2021 1:17 PM IST / Updated: May 31 2021, 06:56 PM IST
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कोरोना से तबाह हुआ ये परिवार, माता-पिता,दादा-दादी की मौत से अनाथ हुए 3 बच्चे, घर का मुखिया बना 13 साल का बच्चा

शामली के लिसाढ़ गांव निवासी किसान मांगेराम मलिक खेती कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। मांगेराम के बेटे लोकेद्र मलिक (40) इकलौते बेटे कमाऊ पूत थे। लेकिन, वो कोरोना की पहली लहर में चपेट में आ गए। जिनकी उपचार के दौरान अप्रैल 2020 को मौत हो गई।
 

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लोकेंद्र के बड़े बेटे हिमांशु मलिक (13) ने बताते हैं कि पापा ने उसका और उसकी 11 साल की बहन प्राची का एडमिशन शामली के सरस्वती मंदिर में कराया था। वह हाईस्कूल तथा उसकी बहन नौ की छात्रा है, जबकि छोटा भाई प्रियांश (10) गांव के सरस्वती  शिशु मंदिर स्कूल में कक्षा सात में पढ़ रहा है। 
 

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पिता लोकेंद्र की मौत के बाद दादा मांगेराम व उनकी दादी इस सदमें को झेल नहीं पाए और कुछ समय बाद दादा फिर दादी चल की मौत हो गई। परिवार अभी इस सदमे से उभर नहीं पाया था कि दूसरी लहर में मां सविता (40) भी कोरोन कोरोना वायरस की चपेट में आ गई। पूर्व में घर में हो चुकी तीन मौतों से इतना डर बैठ गया कि वह शामली से जाने की हिम्मत ना जुटा पाई।

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बच्चों के बार-बार समझाने के बाद भी तैयार नहीं हुई तो उन्होंने इसकी जानकारी अपने मामा संजू को दी। जिन्होंने अपनी बहन को एक प्राइवेट हॉस्पिटल में सीटी स्कैन कराया। जहां उसके 90 प्रतिशत से भी अधिक संक्रमित हो गया था, जिसके चलते डॉक्टर्स ने भी हाथ खड़े कर लिए और 30 अप्रैल को सविता ने दम तोड़ दिया।
 

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एक साल में चार मौत हो जाने के कारण बच्चों के ऊपर गम का पहाड़ टूट पड़ा है। परिवार में अब तीन बच्चों के अलावा कोई नहीं बचा है। ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेदारी 13 साल के हिमांशु के कंधों पर आ गई है, जो खेतों करके परिवार का खर्च चला रहा है।

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