सिर्फ जन्मभूमि ही नहीं, अयोध्या में 8 जगह और भी हैं जहां से है भगवान श्रीराम का कनेक्शन

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से खत्म हो गया। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में जजों की बेंच ने रामलला को विवादित जमीन का मालिकाना हक दे दिया। इसके साथ ही कई सौ साल से धार्मिक नागरी को लेकर जारी विवाद समाप्त हो गया। अयोध्या में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। लेकिन इसका जिक्र आने पर लोग आमतौर पर जन्मभूमि, उसके आसपास के इलाके और हनुमानगढ़ी तक का नाम सुनते हैं।

Ujjwal Singh | Published : Nov 23, 2019 7:23 AM IST / Updated: Nov 23 2019, 02:14 PM IST

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सिर्फ जन्मभूमि ही नहीं, अयोध्या में 8 जगह और भी हैं जहां से है भगवान श्रीराम का कनेक्शन
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भरतकुंड, राम जन्मभूमि से तकरीबन 14 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। अयोध्या-प्रयागराज राजमार्ग पर स्थित रामायणकालीन स्थान पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत ने तपस्या की थी। बताया जाता है कि जब राम वन जा रहे थे इसी जगह भरत उन्हें मनाने पहुंचे थे। भगवान राम के वापस ना आने पर भारत उनकी खड़ाऊ लेकर अयोध्या आ गए थे। खड़ाऊ को सिंहासन पर रखकर उन्होंने अयोध्या से 14 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में 14 वर्षों तक कड़ी तपस्या की थी। यह स्थान भरतकुंड के नाम से मशहूर है।
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गिरिजा कुंड, राम जन्मभूमि से करीब 7 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है। मान्यता है कि जब राजा जनक अपनी बेटी सीता से मिलने अयोध्या आते थे तब वह इसी स्थान पर रुकते थे। पुराने समय मे हिंदुओं में मान्यता थी कि कोई पिता अपनी बेटी के ससुराल में ना तो रुक सकता था और ना ही भोजन करता था । ऐसे में राजा जनक जनकौरा नामक स्थान पर रुकते थे वहां पर उन्होंने मन्त्रेश्वर महादेव का एक सुंदर मंदिर भी बनवाया था जो आज भी मौजूद है। वहां पर एक विशाल कुंड भी है। इसे गिरिजा कुंड के नाम से जाना जाता है।
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सूरजकुंड, श्रीराम जन्मभूमि से करीब 12 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में दर्शन नगर नामक स्थान पर है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था तब संसार के 33 करोड़ देवी देवता उनके दर्शन के लिए अयोध्या आए थे। उसी समय सूर्यदेव भी श्रीराम के दर्शन करने के लिए अयोध्या पहुंचे थे। उस स्थान पर उन्होंने अपना रथ खड़ा किया था। बताया जाता है कि अयोध्या में सूर्य देव के आगमन की वजह से एक महीने तक रात्रि नहीं हुई थी। सूर्यदेव के रथ खड़ा करने की जगह पर एक छोटा सा गड्ढा बन गया था। जिसे बाद में किसी जमाने में अयोध्या के राजा रहे दर्शन सिंह ने विशाल कुंड के रूप में बनवा दिया था। इस जगह को सूरजकुंड के नाम से जाना जाता है। यहां सूर्य देव का एक प्राचीन मंदिर भी है।
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मांडवी धाम, जन्मभूमि से 14 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में मड़ना नामक स्थान पर है। बताया जाता है कि इस स्थान पर श्री राम के छोटे भाई भरत की पत्नी मांडवी ने 14 वर्षों तक निवास कर भगवान शिव की पूजा की थी। मान्यता है कि राम के वनवास जाने के बाद भरत ने नंदीग्राम में रहकर 14 वर्षों तक तपस्या की थी। इसके बाद मांडवी ने भी महल और राजसी सुख त्याग कर मड़ना नामक स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी। इस स्थान पर भगवान शिव का एक मंदिर और कुंड है।
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दशरथ समाधि, जन्मभूमि से तकरीबन 9 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में कूरा बाजार नामक स्थान पर है। कहा जाता है कि जब राजा दशरथ ने राम के वनवास के दुख में अपने प्राण त्यागे तो उस समय उनका अंतिम संस्कार इसी जगह पर किया गया था। यहां उनकी समाधि स्थल और मंदिर है।
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नरकुंड, जन्म स्थान से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व दिशा में है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था उसके बाद इसी जगह पर उनकी नाल गाड़ी गई थी। आज यहां एक विशाल कुंड है। जिसे नरकुंड के नाम से जाना जाता है।
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गुप्तार घाट, जमभूमि से करीब 3 किमी दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। धार्मिक नगरी अयोध्या के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान राम ने अपने चारों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ जल समाधि ली थी। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका जिक्र मिलता है कि भगवान श्रीराम ने माता जानकी के पृथ्वी में समा जाने के बाद चारों भाइयों के साथ जल समाधि ले ली थी। यह वही सरयू नदी का वही गुप्तार घाट है जहां उन्होंने जल समाधि ली थी।
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मणि पर्वत, जन्मभूमि से पूरब दिशा में तकरीबन 5 किमी दूर मणि पर्वत है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि जब महाबली हनुमान युद्ध में मेघनाथ का बाण लगने से मूर्छित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लाने गए थे तब उन्होंने इसी जगह पर पहाड़ रखकर विश्राम किया था। इसके बाद इसका कुछ अंश टूट कर वहीं गिर गया था जो आज मणि पर्वत के नाम से मशहूर है। यहां पर तकरीबन 100 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ीनुमा जगह है जिस पर मंदिर बना हुआ है। सावन के महीने में अयोध्या का ऐतिहासिक झूलनोत्सव यहीं है।
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