किसी को मुसीबत में देखते ही कराह उठता था कारगिल के इस शहीद का दिल, पत्नी बोली- वो आखिरी वादा अधूरा ही रह गया

प्रयागराज(Uttar Pradesh). 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है. दुश्मनों को हमारी पवित्र भूमि से बाहर भगाने के लिए सेना के जवानों ने अपने जान की बाजी लगा दी। सैकड़ों जवान शहीद भी हो गए। दुश्मन से लड़ते हुए अपने प्राण न्वौछावर कर दिया लेकिन हार नहीं मानी और दुश्मनों को सीमा के पार खदेड़ कर ही दम लिया। ऐसे ही एक शहीद के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। एशियानेट न्यूज हिंदी ने कारगिल में साल 1999 में शहीद हुए लांसनायक विजय कुमार शुक्ला के परिवार से बात की।
 

Asianet News Hindi | Published : Jul 25, 2020 10:38 AM IST / Updated: Jul 25 2020, 04:19 PM IST

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किसी को मुसीबत में देखते ही कराह उठता था कारगिल के इस शहीद का दिल, पत्नी बोली- वो आखिरी वादा अधूरा ही रह गया

कारगिल शहीद लांसनायक विजय शुक्ल जनपद प्रतापगढ़ के बाघराय थाने के पीथीपुर गांव के रहने वाले थे। वह सेना की 12वीं जाट बटालियन में तैनात थे। 26 जुलाई 1999 को लांसनायक विजय शुक्ला शहीद हो गए थे। वह शहीद होने के महज 20 दिन पहले ही घर से छुट्टी पूरी कर गए थे। उनकी ड्यूटी ग्लेशियर में थी, लेकिन पाक के साथ युद्ध छिड़ते ही उन्हें कारगिल बुला लिया गया, जहां दुश्मन से लोहा लेते हुए उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। 
 

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विजय शुक्ला की पत्नी गुड़िया देवी ने बताया कि उनके चार बेटियां और इकलौता बेटा है। सबसे बड़ी बेटी दीपा शुक्ला की इसी साल फरवरी में शादी हो चुकी है, इसके आलावा दूसरे नम्बर पर शिखा शुक्ला, तीसरे नम्बर पर बेटी दिव्या शुक्ला, चौथे नम्बर पर बेटा शिवशंकर शुक्ला और पांचवे नम्बर पर बेटी सौम्या शुक्ला हैं। सभी की पढ़ाई चल रही है, बच्चे आर्मी स्कूल प्रयागराज से ही पढ़े हैं।

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शहीद के पत्नी गुड़िया ने बताया कि 26 जुलाई 1999 की बात है मेरे पिता जी का तबियत खराब थी वह प्रयागराज के एक अस्पताल में भर्ती थे। मैं उन्हें देखने गई थी. घर पर भी सारे लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। इसी दौरान स्थानीय थाने की पुलिस जीप आकर घर के सामने रुकी। उसमे से उतरे पुलिस कर्मियों ने मेरे ससुर जी को बुलाया। पुलिसकर्मियों ने उन्हें बताया कि आपके बेटे को बॉर्डर पर युद्ध के दौरान गोली लगी है जिसमें वह शहीद हो गए हैं।

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उन दिनों फोन नहीं होते थे। सूचना मिलते ही पूरे घर में कोहराम मच गया। परिवार से ही एक लोग मुझे लेने के लिए प्रयागराज भेजे गए। घर आने के बाद जब मैंने वहां जुटी भीड़ देखी तो मुझे आभास हो गया क्योंकि वह कारगिल की लड़ाई में थे, जहां रोजाना हमारे देश के जवान शहीद हो रहे थे। मुझे जब हकीकत का पता चला तो मैं बदहवास सी हो गई। कश्मीर में मौसम खराब होने के कारण तीसरे दिन उनकी लाश आ सकी।
 

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शहीद विजय की पत्नी गुड़िया ने बताया कि जब वह शहीद हुए तो उसके मात्र 20 दिन पहले ही वह ड्यूटी पर गए थे। उस समय मेरा बेटा महज 8 महीने का था जबकि बेटी सौम्या गर्भ में थी। गुड़िया ने बताया कि उन्होंने मुझे अपना ख्याल रखने को कहा और बोले कि 2 महीने आड़ छुट्टी आऊंगा तो बेटे का मुंडन धूमधाम से करूंगा। उन्होने परिवार के अन्य लोगों से भी इस बारे में प्लं बनाया था कि किसे बुलाना है... कितनी भीड़ करनी है... आदि।

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ये कहते हुए शहीद की पत्नी गुड़िया फफक कर रो पड़ी, उन्होंने कहा कि वह अपना आख़िरी वादा नहीं पूरा कर सके। हांलाकि उनके गुजरने के बाद उनकी इच्छा के मुताबिक बेटे के सभी कार्यक्रम किए गए, उन्हें मीठा बहुत पसंद था, वह जब भी छुट्टी आते थे हमेशा गुझिया,खीर ये तमाम मीठी चीजें बनवाकर खाते थे। उन्हें दूसरों की मदद करने में परम संतोष मिलता था, उनकी जानकारी में अगर किसी को कोई तकलीफ है तो वह उसकी मदद को मचल उठते थे। उसकी मदद के लिए उन्हें कर्ज भी लेना पड़ता था तो भी वह कभी पीछे नहीं हटते थे।

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शहीद की बेटी सौम्या और बेटे शिवशंकर ने भी हमसे बात की। आर्मी स्कूल में इंटरमीडिएट की छात्रा सौम्या अपने पापा की तरह एक बहादुर आर्मी आफिसर बनना चाहती है। सौम्या ने बातचीत के दौरान कहा कि मुझे गर्व है कि मैं एक कारगिल शहीद की बेटी हूं। सौम्या ये कहते हुए भावुक हो गई कि मैंने अपने पापा को देखा तो नहीं था लेकिन दूसरों के द्वारा उनकी तारीफ़ सुनकर मैं प्राउड फील करती हूं। सौम्या ने कहा कि वह भी बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर आर्मी के मेडिकल कोर में जाना चाहती है। 

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वहीं शहीद के बेटे ने शिवशंकर ने बताया कि वह शुरू से आर्मी में जाने की तमन्ना पाले हुए थे लेकिन इकलौता होने के कारण उनकी मां ने उन्हें आर्मी में जाने से रोक दिया। शिवशंकर ने कहा कि मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहे हैं और NEET करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि जब मां को किसी अवसर पर प्रशासनिक या संस्थाओं द्वारा एक शहीद की पत्नी होने के नाते सम्मानित किया जाता है तो मैं खुद पर गर्व महसूस करता हूं। मुझे पिता का प्यार तो नहीं मिला लेकिन मेरी मां ने कभी इसकी कमी नहीं महसूस होने दी।

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लांसनायक विजय शुक्ला के शहीद होने के बाद उन्हें शासन की ओर से एक पेट्रोल पम्प और 20 लाख की आर्थिक मदद दी गई थी। शहीद लांसनायक विजय शुक्ला के नाम से उनका पेट्रोल पम्प प्रयागराज अयोध्या हाईवे पर प्रयागराज की सोरांव के पास स्थित है जो उनकी पत्नी गुड़िया और बेटा शिवशंकर मिलकर देखते हैं। शहीद की पत्नी गुड़िया ने बताया कि पति की शहादत के बाद शासन प्रशासन से उन्हें पूरा सहयोग मिला। पेट्रोल पम्प से होने वाली इनकम से बच्चों की पढ़ाई,घर का खर्च के साथ ही शादी विवाह में भी आने वाले खर्च अडजस्ट हो जाएंगे।

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