...जब कबाब के लिए रुक जाती थी शूटिंग, ऋषि कहते थे- इतना तो मेरा बाप भी नहीं कराता था मुझसे काम

लखनऊ (Uttar Pradesh) । फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर का मुंबई में निधन हो गया। ऋषि कपूर के साथ काम कर चुके लखनऊ के कई कलाकार उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। साथ ही उनके साथ गुजारे गए पल याद कर रहे हैं। जिनके माध्यम से हम आपको ऋषि कपूर के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें बता रहे हैं। बात 2017 की है, जब उन दिनों वो लखनऊ में करीब 27 दिन रुके थे। उनके साथ लखनऊ में काम करने वाले कलाकार बताते हैं कि 12-12 घंटे की शिफ्ट करने के बाद भी ऋषि कपूर ज़रा भी नही थकते थे। हां मज़ाक-मज़ाक में ये ज़रूर कहते थे कि इतना काम तो मेरा बाप भी मुझसे नहीं कराता था। उन्हें ऋषि कपूर लखनऊ के कबाब के बहुत शौकीन थे, कई बार तो हम लोग उनके लिए सेट पर शूटिंग रोककर ही कबाब मंगवाते थे, वो जब भरपेट खा लेते थे, तब आगे का काम शुरू होता था।

Ankur Shukla | Published : Apr 30, 2020 11:15 AM IST
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...जब कबाब के लिए रुक जाती थी शूटिंग, ऋषि कहते थे- इतना तो मेरा बाप भी नहीं कराता था मुझसे काम

बात 2017 की है, फिल्म मुल्क की शूटिंग के सिलसिले में अभिनेता ऋषि कपूर लखनऊ आए थे। इस दौरान वे 27 दिनों तक थे। 
 

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लखनऊ के सिटी स्टेशन, अकबरी गेट के अलावा पुराने लखनऊ की तमाम गलियों में उन्होंने शूटिंग की। फिल्म में उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति मुराद अली मोहम्मद का किरदार निभाया था। 

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फिल्म मुल्क में ऋषि कपूर किरदार शानदार था। ऋषि कपूर की यही खासियत थी कि वो किरदार में इतना डूब जाते थे कि उनको वक्त का पता ही नहीं चलता था।
 

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लखनऊ में काम करने वाले कलाकार बताते हैं कि 12-12 घंटे की शिफ्ट करने के बाद भी ऋषि कपूर ज़रा भी नहीं थकते थे। हां मज़ाक-मज़ाक में ये ज़रूर कहते थे कि इतना काम तो मेरा बाप भी मुझसे नहीं कराता था।
 

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फिल्म में जिस भी व्यक्ति ने ऋषि कपूर के साथ थोड़ा सा भी काम किया, वो बताते थे कि बेहद शानदार व्यक्ति थे। उन्हें लखनऊ के कबाब के बहुत शौकीन थे। 
 

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कलाकारों कहते हैं कि ऋषि कपूर कई बार तो हम लोग उनके लिए सेट पर शूटिंग रोककर ही कबाब मंगवाते थे। वो जब भरपेट खा लेते थे, तब आगे का काम शुरू होता था।
 

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फिल्म मुल्क की शूटिंग का आखिरी सीन दादा मियां दरगाह पर शूट किया गया था। 27 दिनों की शूटिंग खत्म करने के बाद जब ऋषि कपूर वापस मुम्बई जाने लगे तो सबके चेहरे पर एक मायूसी थी, क्योंकि ये 27 दिन ज़िंदगी के खूबसूरत पलों के एक गुलदस्ते की तरह थे।

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