जाने कौन हैं निरंजनी अखाड़े के नए अध्यक्ष रविंद्र पुरी, जिनसे रहते थे नाराज अब बने उनके ही उत्तराधिकारी

प्रयागराज : संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के इतिहास में सोमवार को नया अध्याय जुड़ गया। महंत रविंद्र पुरी (ravindra puri) को अखाड़ा परिषद का अध्‍यक्ष चुन लिया गया। रविंद्र पुरी को 7 अखाड़ों की मौजूदगी और एक अखाड़े की लिखित सहमति के बाद अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, उन्होंने 19 अक्टूबर को ही खुद को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष घोषित कर दिया था। महंत नरेंद्र गिरि (narendra giri) के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी गद्दी पर बैठने वाले रविंद्र पुरी के बारे में कहा जाता है कि वह नरेंद्र गिरि के काम करने के तरीकों से सहमत और संतुष्ट नहीं थे। आइए जानते हैं उनसे जुड़ी अनसुनी बातें...

Asianet News Hindi | Published : Oct 25, 2021 4:29 PM IST

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जाने कौन हैं निरंजनी अखाड़े के नए अध्यक्ष रविंद्र पुरी, जिनसे रहते थे नाराज अब बने उनके ही उत्तराधिकारी

कौन हैं महंत रविंद्र पुरी?
महंत रविंद्र पुरी हरिद्वार (Haridwar) के कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर व महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव हैं। वह 35 साल पहले संन्यास लेकर महानिर्वाणी अखाड़े में शामिल हुए थे। रविंद्र पुरी 1998 के कुंभ मेले के बाद अखाड़े की कार्यकारिणी में शामिल हुए। उन्हें 2007 में अखाड़े का सचिव बनाया गया। 

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कब तक बने रहेंगे अध्यक्ष
अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष पांच साल के लिए चुना जाता है। यह मध्यावधि चुनाव था और महंत रवींद्र पुरी का अध्यक्ष पद पर कार्यकाल साल 2024 तक का होगा। उन्होंने कहा कि सभी साधु संतों ने महंत रवींद्र पुरी के नेतृत्व में भरोसा जताते हुए सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए तन, मन, धन से सहयोग करने का संकल्प लिया।

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महंत नरेंद्र गिरि से क्यों रहे असंतुष्ट
महंत रविंद्र पुरी जब महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव थे तब अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत महंत नरेंद्र गिरि की कार्यशैली से कभी संतुष्ट नहीं रहे। साल 2016 के उज्जैन (ujjain) महाकुंभ मेले में अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों का चुनाव होना था, जिसमें रविंद्र पुरी भी दावेदारी कर रहे थे, लेकिन उस समय महंत नरेंद्र गिरि को परिषद का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद पुरी और गिरि के बीच कई बार असहमति की स्थिति बनी।

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कुंभ में ठुकराए एक करोड़
2021 में हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान फिर नरेंद्र गिरि को अध्यक्ष और हरी गिरि को महामंत्री चुना गया। नरेंद्र गिरि के साथ पुरी की असहमति का एक उदाहरण यह है कि हरिद्वार कुंभ में नरेंद्र गिरि ने सभी अखाड़ों में व्यवस्था के लिए सरकार से एक-एक करोड़ रुपए अखाड़ों को दिलवाए थे, लेकिन महंत रविंद्र पुरी ने महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से सरकार का एक करोड़ रुपए ठुकरा दिया था।
 

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अध्यक्ष का पद होता है खास
देश में प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले में सरकार की ओर से साधु संतों और अखाड़ों को कई सुविधाएं दी जाती हैं। इन सुविधाओं को साधु-संतों तक पहुंचाने और संतो और सरकार के बीच समन्वय बनाने में अखाड़ा परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को महत्वपूर्ण माना जाता है।

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1954 में हुआ था गठन
शंकराचार्य ने सभी अखाड़ों को एकजुट करने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया। साधु-संतों की इस सर्वोच्च परिषद में हर अखाड़े के महात्माओं का प्रतिनिधित्व होता है। परिषद में अध्यक्ष और महामंत्री का पद प्रभावशाली होता है। इस समय 13 अखाड़े ही हैं जिनकी मान्यता है। इनमें जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, अटल, आह्वान व आनंद संन्यासी अखाड़े माने जाते हैं। वैष्णव अर्थात वैरागियों के अखाड़े दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी व निर्मोही अनी हैं, जबकि उदासीन के अखाड़ों में बड़ा उदासीन, नया उदासीन और निर्मल शामिल हैं।

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