Published : Jun 05, 2020, 12:30 PM ISTUpdated : Jun 05, 2020, 02:39 PM IST
हटके डेस्क: खोजी प्रवृति का इंसान बिना- समझे कहीं भी पहुंच जाता है। इसमें काफी रिस्क होता है लेकिन लोगों को इसमें काफी सुकून भी मिलता है। ऐसा ही कुछ हुआ 35 साल की एक ब्रिटिश महिला के साथ। वो अपने देश से म्यांमार आई थी। उनके साथ चार अन्य लोग भी म्यांमार के क्यों पीला आइलैंड आए थे। कुल पांच लोगों की ये टीम रिसर्च के लिए 1 महीने की अवधि के लिए इस आइलैंड पर आए थे। ये पूरा आइलैंड खतरनाक सांपों से भरा है। लेकिन फिर कुछ ऐसी परेशानी आई कि उन्हें आइलैंड में दो महीने बिताने पड़ गए। इस बीच उनके पास राशन खत्म हो गया। खाने की कमी और बाकी संसाधनों की कमी के बीच पूरी टीम ने किसी तरह दो महीने बिताए। अब जाकर टीम वापस लौटी है। इसके बाद उन्होंने अपना एक्सपीरियंस लोगों के साथ शेयर किया...
35 साल की नताली पूले ने म्यांमार के क्यों पीला आइलैंड में 60 दिन बिताए। इस दौरान उनके साथ टीम के 4 अन्य लोग भी थे।
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पेशे से स्कूबा डाइवर नताली आइलैंड पर एक महीने के लिए ही गई थी। लेकिन टेक्नीकल कारणों से उन्हें अगले एक और महीने वहां रहना पड़ गया।
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क्यों पीला आइलैंड खतरनाक सांपों से भरा है। दो महीने खाने की कमी के बीच पूरी टीम ने काफी मुश्किल से समय बिताया।
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दरअसल, उन्हें जो बोट एक महीने बाद लेने आने वाला था, वो आया ही नहीं। उन्हें ऐसा लगा कि अब वो लोग कभी वापस नहीं लौट पाएंगे।
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लेकिन तमाम मुश्किलों के बीच टीम ने दो महीने काट लिए। इसके बाद उन्हें अचानक आइलैंड के पास से एक सप्लाई बोट दिखाई दी, जिसके साथ टीम मेनलैंड तक आ गई।
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सप्लाई बोट से वो मेनलैंड आई, जहां से उन्होंने पेरिस से फ्लाइट ली। अब सारी टीम वापस अपने घर आ गई है।
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वापस आकर उन्होंने आइलैंड पर अपने दो महीने की जर्नी लोगों के साथ शेयर की। नताली ने बताया कि मुश्किलें तो थी लेकिन उन्होंने उस समय को एन्जॉय किया।
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आइलैंड पर टीम एक कैंप में रह रहे थे। उनके पास एक महीने का राशन ही था। इस कारण एक महीना तो आराम से बीता लेकिन दूसरे महीने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
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नताली ने बताया कि आइलैंड तो काफी खूबसूरत था। लेकिन वहां काफी खतरनाक सांप रहते थे। हर समय जान को खतरा रहता था।
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उनके पास खाने की कमी हो गई थी। साथ ही पीने के लिए पानी भी नहीं था। ऐसे में उन्हें काफी स्ट्रगल करना पड़ा।
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अब घर वापस आकर नताली काफी खुश हैं। उन्होंने इसे अपनी जिंदगी अनुभव बताया। संसाधनों की कमी के बीच जिंदगी कैसे बिताई जाती है, वो उन्होंने सीख लिया।