कोरोना वायरस का खतरा तेजी से पूरी दुनिया में फैलता ही चला जा रहा है। लाख कोशिशों के बावजूद इस पर नियंत्रण कर पाना संभव नहीं हो रहा है। लाखों की संख्या में लोग इस जानलेवा वायरस के संक्रमण से प्रभावित हैं और हजारों की मौत हो चुकी है। कई देशों में लॉकडाउन की स्थिति बन गई है। स्कूल-कॉलेज और दूसरे संस्थान बंद हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां लोगों को घर से ही काम करने की सुविधा दे रही है। दुनिया भर में पर्यटकों ने आना-जाना बंद कर दिया है। बड़े-बड़े स्मारक और दर्शनीय स्थल बंद किए जा चुके हैं। भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 126 हो गई है। यहां अब तक तीन लोगों की मौत इस वायरस से हो चुकी है। देश में शिक्षण संस्थान बंद कर दिए गए हैं। यहां तक कि आगरा का वर्ल्ड फेमस ताज महल भी पर्यटकों के लिए बंद किया जा चुका है। कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में एक तरह से हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात बन गए हैं। वहीं, एक सबसे बड़ी बात यह सामने आई है कि कोरोना वायरस की पहचान सबसे पहले सितंबर, 2012 में हुई थी। सांइस डेली (Science Daily) जर्नल के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने सबसे पहले साल 2012 में ही इसके बारे में जानकारी हासिल कर ली थी, जब मिडल ईस्ट और यूरोप में करीब 17 लोगों में कोरोना से मिलते-जुलते लक्षण पाए गए थे। इन 17 लोगों में 11 की मौत हो गई थी। यह रिसर्च नीदरलैंड्स के हेग स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीज के वैज्ञानिकों ने बंदरों पर की थी। इसमें पाया गया था कि इस वायरस का असर 24 घंटे के भीतर शुरू हो जाता है। इससे खास तौर पर फेफड़े प्रभावित होते हैं और न्यूमोनिया जैसे लक्षण सामने आने लगते हैं। साइंस डेली के मुताबिक, कोरोना वायरस के सैंपल नीदरलैंड्स के एरासमस मेडिकल सेंटर के सहयोग से एनआईएच के शोधकर्ताओं ने हासिल किए थे और इसका मॉडल भी तैयार किया था। उस समय कौन जानता था कि 8 साल के बाद इस वायरस से पूरी दुनिया में महामारी जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। देखें कोरोना वायरस से संबंधित तस्वीरें।