ये हैं दुनिया के 7 अजूबे, आखिर इनमें ऐसा क्या है, जानिए कुछ फैक्ट

ये दुनिया सतरंगी है‌! ये 7 अजूबे यही दिखाते हैं। ये इमारतें और जगहें दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। ये अपनी अनूठी शिल्पकला, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तथ्यों के कारण रिसर्च का विषय बनी रहती हैं। यूनेस्को (UNESCO) ने इन धरोहरों को दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा माना है। बता दें कि यूनेस्को 'संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization)' का एक छोटा रूप है। इससे 193 देश जुड़े हुए हैं। यूनेस्को दुनियाभर की ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण का काम भी करता है। आइए देखते हैं दुनिया के 7 अजूबों के बारे में...

Asianet News Hindi | / Updated: Jan 02 2021, 10:11 PM IST

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ये हैं दुनिया के 7 अजूबे, आखिर इनमें ऐसा क्या है, जानिए कुछ फैक्ट

दुनिया के 7 देशों में ये 7 अजूबे मौजूद हैं। ये इतिहास, संस्कृति,समाज और संघर्ष की कहानियां बयां करते हैं।

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चीचेन इट्जा या चिचेन इत्ज़ा का मतलब कुएं के मुहोन पर होता है। यह स्थल वास्तु शैली के अद्भुत रूप के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। यह एक शहर था।

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यह एक खूनी अखाड़ा था। हालांकि यहां पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटक भी खेले जाते थे। यहां साल में दो बार बड़े आयोजन होते थे। 21वीं शताब्दी में आए भूकंप और पत्थर चोरी के बाद अब यह जगह सिर्फ खंडहर बची है।

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माचू पिच्चू का मतलब होता है पुरानी चोटी। यहां मौजूद मंदिरों को पॉलिश किए पत्थरों से बनाया गया है। यह एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।

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यह दुनिया में अपने तरह की एक विशाल मूर्ति मानी जाती है। यह मजबूत कांक्रीट और सोपस्टोन से बनी है। इसका ढांचा फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्स्की ने तैयार किया है। जबकि इंजीनियरिंग हीटर डा सिल्वा कोस्टा की है।

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यह एक प्राचीन नगर है। इसे पत्थरों से तराश कर बनाया गया है। यहां की जलवाहन(वाटर सप्लाई) प्रणाली अद्भुत है। बीबीसी ने इसे मरने से पहले 40 देखने योग्य स्थलों में जगह दी है।

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भारत के उत्तर प्रदेश में आगरा में स्थित है ताजमहल। यह मुगलकालीन वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। यहां प्रतिदिन लाखों पर्यटक आते हैं। हालांकि कोरोनाकाल में अभी कम लोग आ रहे हैं। ताजमहल को इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है।

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चीन की दीवार विभिन्न शासकों ने दुश्मनों के हमले से बचने बनवाया था। इसका निर्माण 5वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक चला। इस दीवार के लिए उसी जगह की मिट्टी और पत्थरों को खोदा गया। यह दीवार चीन की पहचान बनी हुई है।

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