जीरो खर्च पर दिनभर में 500 लीटर गंदा पानी दुबारा इस्तेमाल करने लायक बना देती है यह जुगाड़ की मशीन

साइंस प्रैक्टिकल मांगता है। यानी किताबी ज्ञान के बावजूद कोई भी आविष्कार तभी संभव हो पाता है, जब प्रयोग किए जाएं। 12वीं के बाद इस शख्स ने IIT में दाखिले का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। इसके बाद शख्स ने  MIT उज्जैन से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की। यह तो हुई पढ़ाई की बात। लेकिन इसका यह आविष्कार पढ़ाई-लिखाई से परे है। यह एक ऐसा आविष्कार है, जो देसी जुगाड़ तकनीक का गजब उदाहरण है। यह है बिना बिजली के चलने वाला वॉटर फिल्टर। यह दिनभर में 500 लीटर गंदे पानी को फिल्टर करके नहाने-धोने और अन्य घरेलू काम के इस्तेमाल के लायक बना देता है। बस इसे खाने और पीने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन पहले यह पानी किसी काम का नहीं होता था। यह हैं मध्य प्रदेश के रतलाम के रहने वाले जितेंद्र चौधरी। इनका यह सस्ता और किफायती वाटर फिल्टर‘शुद्धम’ के नाम से जाना जाता है। इसे देशभर में सराहा गया है। आगे पढ़ें इन्हीं की कहानी...
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 25, 2020 12:03 PM IST

18
जीरो खर्च पर दिनभर में 500 लीटर गंदा पानी दुबारा इस्तेमाल करने लायक बना देती है यह जुगाड़ की मशीन

एक किसान परिवार में जन्मे जितेंद्र चौधरी एक बार 10वीं में भी फेल हो गए थे। इसके बाद राजस्थान में रहकर जैसे-तैसे पढ़ाई पूरी की। हालांकि जितेंद्र मानते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर 10वीं में फेल नहीं होते, तो गांव में रहकर आर्ट से पढ़ाई करनी पड़ती। राजस्थान पहुंचे, तो साइंस में पढ़ने का मौका मिला। बता दें कि जितेंद्र की यह कहानी हम द बेटरइंडिया वेबसाइट से साभार लेकर आपके लिए लेकर आए हैं। आगे पढ़ें कैसे आया यह आइडिया

28

जितेंद्र बताते हैं कि 2013 में वे किसी गांव में गए थे। वहां देखा कि लोग खाट पर बैठकर नहाते हैं, ताकि पानी की बचत हो सके। इस पानी का इस्तेमाल कपड़े धोने में करते थे। पानी की किल्लत देखकर उनके दिमाग में ऐसा वॉटर फिल्टर बनाने का आइडिया आया, जो गंदे पानी को साफ कर सके। यह पानी खाने-पीने को छोड़कर बाकी कामों में इस्तेमाल हो सके। जितेंद्र के वॉटर फिल्टर की कीमत 7000 रुपए है। इसके रखरखाव पर सालभर में सिर्फ 500-700 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। ‘शुद्धम’ फ़िल्टर ग्रेविटी के के सिद्धांत पर काम करता है। यह कई चैम्बर से गुजरते हुए नीचे जाकर इकट्ठा होता है। जितेंद्र ‘शुद्धम’ के लिए तीन पेटेंट फाइल कर चुके हैं। आगे पढ़ें-घर में पड़ा था ढेर कबाड़, इससे पहले कि घरवाले कबाड़ी को देते बेटे ने बना दी गजब मशीन

38

देश में किसानों के पिछड़े होने की एक बड़ी वजह उनके पास खेतीबाड़ी के लिए संसाधनों की कमी है। छोटे और गरीब किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं है। दवा के छिड़काव के लिए आधुनिक मशीनें नहीं हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए राजस्थान के उदयपुर जिले के मावली कस्बे के रहने वाले इस युवा किसान ने कबाड़ से यह मशीन बना दी। यह हैं बाबूलाल। इनका यह आविष्कार कुछ साल पहले मीडिया की सुर्खियों में आया था। ये गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। खेती-किसानी के लिए आधुनिक मशीनें नहीं खरीद सकते थे। घर में ढेर-सारा कबाड़ पड़ा था। इससे पहले कि घरवाले उसे किसी कबाड़ी को बेचते, उन्होंने यह मशीन बना दी। इस मशीन से खेतों की बुआई से लेकर दवा के छिड़काव तक हो जाता है। आगे पढ़ें-लॉकडाउन में काम-धंधा चौपट हो गया, तो जुगाड़ से रोजगार के ऐसे तरीके क्यों नहीं आजमाते

48

पुणे. महाराष्ट्र. पुणे के रहने वाले युसूफ फारुख शेख गाड़ियों के पंचर सुधारने का काम करते हैं। पहले वो एक गुमटी में दुकान चलाते थे। इससे उतनी कमाई नहीं थी। फिर उन्होंने एक आइडिया लगाया और अपने पुराने स्कूटर में ही एयर टैंक और कम्प्रेसर लगाया। अब वे मोबाइल पंचरवाला बन गए हैं। किसी के बुलाने या रास्ते में किसी की गाड़ी का पंचर सुधारकर वे अब इतना कमाने लगे हैं कि परिवार का खर्च अच्छे से चल सके। 39 वर्षीय फारुख ने देखा कि रास्ते में पंचर होने वाली गाड़ियों के लोगों को परेशान होना पड़ता है। वे पंचर सुधरवाने दोगुने तक पैसे देने को तैयार रहते हैं। तभी फारुख ने स्कूटर को मॉडिफाई करने का सोचा। आगे पढ़ें इसी की कहानी...

58

फारुख को अपने स्कूटर का मॉडिफाई करने में करीब 12000 रुपए का खर्चा आया। अब युसूफ पंचर सुधारने के 50 रुपए तक लेते हैं। लोग यह पैसा बिना मुंह बिचकाए देते हैं, क्योंकि उनको ऑन द स्पॉट सुविधा मिल जाती है। आगे पढ़ें इसी की कहानी...

68

इस यूनिक आइडिया के बाद फारख की कमाई दोगुना हो गई है। पहले वे बमुश्किल 4-5 हजार रुपए कमा पाते थे, लेकिन अब 8-10 हजार रुपए महीना कमा लेते हैं। इससे उनके परिवार का खर्च अच्छे से चल जाता है। आगे पढ़ें-जुगाड़ से बनीं गजब मशीनें...

78

बालोद, छत्तीसगढ़.  मूंगफली को फसल से अलग करना पेंचीदा काम होता है। इसके लिए महंगी-महंगी मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन गरीब किसान हाथों की मेहनत यह काम करते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की बालोद स्थित बटालियन के जवानों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिनसे यह काम आसान कर दिया। यह मामला पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में आया था। इसमें साइकिल को उल्टा करके जब पिछले पहिये में मूंगफली की फसल फसाई गई, तो वो अलग-अलग हो गई। इससे समय की बचत हुई और महंगी मशीन खरीदने का खर्चा भी बचा। साइकिलिंग के जरिये इन जवानों ने 20-30 किलो मूंगफली साफ करके दिखाया था। 

88

यह है राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के अमरगढ़ में रहने वाले किसानों की कहानी। यहां के गांवों में बिजली की बड़ी दिक्कत थी। इसलिए किसान डीजल के इंजन पर निर्भर थे। लेकिन डीजल इतना महंगा पड़ता था कि उन्हें टेंशन होने लगती थी। बस फिर क्या था...कुछ किसानों ने दिमाग लगाया और रसोई गैस से इंजन चलाने का तरीका खोज निकाला। किसानों ने बताया कि डीजल से एक घंटे इंजन चलाने पर 150 रुपए से ज्यादा का खर्चा आता था। लेकिन गैस सिलेंडर से चलाने पर एक चौथाई खर्चा। 

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos