सीएम खट्टर ने बताया कि वह मंगलवार को होने वाली एनसीआरपीबी की अगली बैठक में आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री हरदीप पुरी के साथ इस मामले को उठाएंगे। राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, हरियाणा सरकार ने सबसे पहले पिछले साल जुलाई में कटौती का प्रस्ताव रखा था।
चंडीगढ़। हरियाणा सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के अपने मौजूदा हिस्से में कम से कम एक तिहाई कटौती की मांग कर रही है, जिसके लिए राज्य ने एनसीआर योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) को एक प्रस्ताव देकर इस पर विचार करने का आग्रह किया है। तर्क दिया जा रहा है कि एनसीआर का हिस्सा बनने के बाद हरियाणा को नुकसान का ज्यादा सामना करना पड़ रहा है। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि "एनसीआरपीबी ने "सैद्धांतिक रूप से’ हरियाणा के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है।’
सीएम खट्टर ने बताया कि वह मंगलवार को होने वाली एनसीआरपीबी की अगली बैठक में आवास और शहरी मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री हरदीप पुरी के साथ इस मामले को उठाएंगे। राज्य सरकार के अधिकारियों के मुताबिक, हरियाणा सरकार ने सबसे पहले पिछले साल जुलाई में कटौती का प्रस्ताव रखा था। सरकार ने योजना बोर्ड की मंजूरी के लिए एनसीआर के संशोधित परिसीमन के लिए एक प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था। सरकार के मसौदे के प्रस्ताव के अनुसार, हरियाणा उप-क्षेत्र की सीमा 25,327 वर्ग किमी के मौजूदा क्षेत्र के मुकाबले 8,281.60 वर्ग किमी होनी चाहिए। अधिकारियों ने कहा कि भिवानी, महेंद्रगढ़, जींद, करनाल और चरखी दादरी जैसे दूर-दराज के जिलों को शामिल करने से दिल्ली पर शहरीकरण का बोझ कम करने के मामले में कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।
22 जिलों में से 14 जिले एनसीआर का हिस्सा
एनसीआर वर्तमान में हरियाणा के कुल 22 जिलों में से 14 को कवर करता है, जो 25,327 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का एनसीआर में 2.69 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि हरियाणा में एनसीआर में 45.98 प्रतिशत का सबसे बड़ा हिस्सा है, जबकि उत्तर प्रदेश में 26.92 प्रतिशत (आठ जिले) और राजस्थान में 24.41 प्रतिशत (दो जिले) शामिल हैं। इतना बड़ा हिस्सा एनसीआर में शामिल होने की वजह से प्रदेश में कई तरह की दिक्कत आ रही हैं। इसके चलते ही अब यह मांग उठ रही है कि एनसीआर से बाहर होना चाहिए।
इसलिए बढ़ाया गया था एनसीआर का एरिया
जानकारों के अनुसार, "राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर शहरीकरण के बोझ को कम करने के लिए एनसीआर क्षेत्र का विस्तार किया गया था। इस प्रकार, आसपास के क्षेत्रों को भी समानांतर सुविधाओं, बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं के साथ विकसित करने का निर्णय लिया गया। तब यह माना जाता रहा कि एनसीआर में शामिल जिलों में विकास खूब होगा। यहां जमीनों के दाम में भी दिल्ली की तरह उछाल आएगा। बुनियादी सुविधाएं भी लोगों को दिल्ली की तरह मिलेंगी।
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दिक्कत ज्यादा आ रही है
एनसीआर में शामिल होने के बाद अब दिक्कत आ रही है। मसलन, यदि एनजीटी प्रदूषण को लेकर कोई प्रतिबंध लगाता है तो इसका असर हरियाणा पर भी पड़ता है। वह रोक चाहे प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए हो या निर्माण कार्यों को लेकर हो। इससे हरियाणा का लगभग 57 प्रतिशत भी उन प्रतिबंधों से प्रभावित होता है, इससे भारी दिक्कत आती है। इसी तरह से यदि एनसीआर के लिए कोई नियम बनता है तो यह भी प्रदेश को प्रभावित करता है। अब यदि एनसीआर का क्षेत्र कम हो जाए तो प्रदेश का बड़ा हिस्सा इस तरह के प्रतिबंधों से मुक्त हो सकता है।
पिछले साल से शुरू हो रहे प्रयास
खट्टर सरकार ने पिछले साल सितंबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के साथ भी मामला उठाया था, जिसमें उनसे पूरे एनसीआर में इसे लागू करने के बजाय कुछ जिलों में प्रदूषण नियंत्रण प्रावधान को लागू करने की मांग की थी। सरकार की ओर से तब बताया गया था कि इस तरह के प्रावधान से प्रदेश में खासी दिक्कत आ रही है। "मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया था कि इस तरह के प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के 10 किलोमीटर के दायरे में या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में लागू किया जाना चाहिए।’