सार

केंद्र सरकार ने ‘भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड नियम, 1974’ में बदलाव कर दिया है। इसकी जगह 23 फरवरी को भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड 2022 नए नियम बनाए गए हैं। इसकी अधिसूचना भी केंद्र सरकार की ओर से जारी कर दी गई है।

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। इन दिनों हरियाणा और पंजाब का विपक्ष मोदी सरकार पर एक साथ हमला बोल रहा है। वजह है- भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के स्थाई सदस्यों की नियुक्ति के नियमों में बदलाव। अभी तक हरियाणा और पंजाब बोर्ड के स्थाई सदस्य थे। केंद्र सरकार ने इस व्यवस्था को बदल दिया है। अब बोर्ड के मैंबर के लिए एक पैमाना निश्चित कर दिया। इस तरह से अब कोई भी राज्य बोर्ड का सदस्य बन सकता है। 

केंद्र ने ‘भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड नियम, 1974’ में बदलाव कर दिया है। इसकी जगह 23 फरवरी को भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड 2022 नए नियम बनाए गए हैं। इसकी अधिसूचना भी केंद्र सरकार की ओर से जारी कर दी गई है। पुराने नियम के अनुसार बीबीएमबी का सदस्य पंजाब के बिजली सेक्टर और हरियाणा का सदस्य सिंचाई सेक्टर से होता था। यह सदस्य इंजीनियर के पैनल से आते थे। 

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BBMB में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली और राजस्थान मेंबर
बीबीएमबी सतलुज और ब्यास नदियों के पानी और बिजली बनाने वाले सयंत्रों का प्रबंधन करता है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड के सदस्य राज्यों में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली शामिल हैं। इसके कुल 9 सदस्य होते हैं। एक चेयरमैन होता है। पुराने नियमों में सिर्फ सदस्य वह राज्य थे, जिनका बीबीएमबी के पानी और बिजली में हिस्सा है। 

BBMB मेंबर फंड देते, आपस में बांटते हैं पानी
यह राज्य बीबीएमबी के लिए फंड भी देते हैं। यहां बांधों से छोड़े गए पानी को आपस में अपने हिस्से के अनुसार बांटते भी हैं। इन राज्यों के कर्मचारी और टेक्निकल स्टाफ तैनात था। अब केंद्र सरकार ने प्रावधान किया है कि किसी भी राज्य के इंजीनियर बोर्ड के सदस्य होने के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसको लेकर ही पंजाब और हरियाणा केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं। 

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विरोध की वजह क्या है?
1. जो राज्य पानी का प्रयोग करते हैं। उन्हें सिंचाई के लिए पानी की अपनी-अपनी जरूरत पता होती है। इसलिए वह आसानी से इसे समझकर बेहतर निर्णय ले सकते हैं। 
2. क्योंकि सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जलबटवारा इतना उलझा हुआ विषय है कि जब तक बाहर का सदस्य इसे समझ पाएगा तब तक उसका कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। 
3. बाहर का  स्टेट सदस्य क्यों होना चाहिए, इसके लिए कोई वाजिब कारण नहीं है। 
4. इससे समस्या और विवादों को जन्म मिल सकता है। क्योंकि तब बाहर का सदस्य केंद्र की बात को ज्यादा तवज्जो देगा। 
5. लाभार्थी राज्यों के हित प्रभावित हो सकते हैं। उन्हें लग रहा है कि केंद्र सरकार जानबूझ कर उनके अधिकार में हस्तक्षेप कर रही है। 

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विपक्ष कर रहा है विरोध 
पंजाब में आम आदमी पार्टी के सीएम फेस भगवंत मान से केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। मान ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में पंजाब की स्थिति को "कमजोर’ करने का आरोप लगाया और केंद्र सरकार के कदम की निंदा की। उन्होंने कहा- "यह भारत की संघीय व्यवस्था के लिए एक सीधा झटका है।’ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सभी "पंजाब विरोधी’ फैसलों की समीक्षा करने और पंजाब के अधिकारों को बहाल करने का आग्रह किया। कांग्रेस के नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी केंद्र सरकार के निर्णय की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अब पंजाब को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि केंद्र सरकार का ये निर्णय बिल्कुल गलत है। इसे वापस लेना चाहिए। 

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आगे क्या हो सकता है? 
पानी का मसला पंजाब और हरियाणा में प्रतिष्ठा का सवाल माना जाता है। इसलिए विपक्ष को पता है कि केंद्र सरकार को इस पर घेरा जा सकता है। ऐसे में विपक्ष लगातार केंद्र सरकार के निर्णय की आलोचना कर रहा है। हरियाणा में कांग्रेस की कोशिश रहेगी कि वह किस तरह से भाजपा और सीएम को घेर सकती है। इसी तरह की स्थिति पंजाब में भी बन सकती है। हरियाणा और पजाब में पानी का मसला कितना गंभीर है,इसे समझने के लिए सतलुज यमुना जोड़ नहर का मामला ही काफी है। किस तरह से पंजाब व हरियाणा पानी को लेकर आमने सामने हैं। इसलिए आने वाले दिनों में दोनो राज्यों में यह मामला खासा जोर पकड़ सकता है। जानकारों का भी मानना है कि केंद्र सरकार को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। क्योंकि इसकी कोई वजह नजर नहीं आती।