
रोहतक, हरियाणा. इस संसार में माता-पिता से बढ़कर कोई नहीं होता। एक पिता अपने बच्चों के लिए संबल होता है। उनका मार्गदर्शक होता है। एक पिता ही होता है, जिसकी उंगुली पकड़कर बच्चे सही रास्ते पर जाते हैं। पिता हमेशा अपने बच्चों के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाता रहा है। यह पिता भी टूटे पैर से ऑटो चला रहा है, ताकि उसकी बेटियों की अच्छी परवरिश हो सके। वे पढ़ सकें। उन्हें भूखे न रहना पड़े। बता दें कि 21 जून को फादर्स-डे मनाया जाएगा। यह दिन प्यारे-साहसी पिताओं की कहानियों को याद करने का दिन है। याद रहे कि पहली बार फादर्स डे 5 जुलाई, 1908 को वेस्ट वर्जीनिया में मनाया गया था। आइए जानते हैं रोहतक के इस पिता की कहानी...
बेटियां जान से प्यारी..
यह हैं 42 साल के अनिल। ये इन दिनों अपने टूटे पैर के बावजूद ऑटो चलाते देखे जा सकते हैं। इनके दायें पैर में फ्रैक्चर है। उसमें लोहे की रॉड पड़ी हुई है। यह किसी हादसे में टूट गया था। इसलिए ये बायें पैर से ऑटो का ब्रेक लगाते हैं। चलने-फिरने के लिए फिलहाल छड़ी का सहारा लेना पड़ रहा है। इस दिक्कत के बावजूद अनिल मुस्कराते हैं। वे कहते हैं कि लॉकडाउन में ऑटो रिक्शा बंद होने से घर में जो कुछ जमा-पूंजी थी, सब खर्च हो गई। पत्नी भी काम करती थी, वो भी छूट गया। उसकी तीन बेटियां हैं। वो अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की कोशिश करता रहेगा। इसलिए बेटियों की खातिर वो टूटे पैर से रिक्शा चलाता है। अनिल मूलत: सोनीपत के रोहणा के रहने वाले हैं। रोहतक में वे पिछले 10 साल से हैं। पहले मजदूरी करते थे। फिर लगा कि इससे बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाना संभव नहीं है, तो ऑटो रिक्शा खरीद लिया। अनिल यहां भिवानी चुंगी के समीप राजेंद्रा कॉलोनी में रहते हैं। उनकी पत्नी चुन्नियों का काम करती थी। दोनों मिलकर ठीकठाक कमा लेते थे। तीनों बेटियां एक निजी स्कूल में पढ़ रही हैं। लेकिन इन दिनों दिक्कत हो रही है।
भले बेटियां सरकारी स्कूल में पढ़ें, लेकिन पढ़ाई जारी रहेगी
अनिल का कुछ महीने पहले एक्सीडेंट हो गया था। इलाज पर काफी खर्च हुआ। इसके बाद लॉकडाउन ने माली हालत और खराब कर दी। पहले सोचा था कि ऑटो किराये पर देकर खुद कोई दूसरा काम करेंगे, लेकिन खुद ऑटो चलाना पड़ रहा है। अनिल बताते हैं कि उनकी 14 साल की बड़ी बेटी साक्षी 9वीं पढ़ती है।10 साल की दीया छठी कक्षा में है। वहीं 5 साल की सोनाक्षी अभी यूकेजी में पढ़ती हैं। इन बच्चियों को फिलहाल सरकारी स्कूल में भर्ती कराना पड़ा है। लेकिन अनिल कहते हैं कि बच्चियों की पढ़ाई नहीं छूटेगी। अनिल कहते हैं कि एक दिन उनके भी अच्छे दिन आएंगे। उनकी बेटियां उनका नाम रोशन करेंगी।
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