जीवन का सबसे मुश्किल दंगल हार गए योगेश्वर दत्त, कभी बने थे देश के सबसे महंगे पहलवान

फ्रीस्टाइल रेसलर हैं, 2014 कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीता। सोशल मीडिया पर गैरज़रूरी विवादों की वजह से चर्चा में रहे हैं। रेसलर संग्राम सिंह और उनकी एक्ट्रेस पत्नी पायल रोहतगी संग विवाद ने सुर्खियां बटोरीं।
 

योगेश्वर दत्त हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बरौदा से चुनाव हार गए हैं। 

हिसार/चंडीगढ़। हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2019 सेलिब्रिटी खिलाड़ियों के चुनावी जंग में उतरने की वजह से भी खास हो गया। इस बार बीजेपी ने तीन खिलाड़ियों को पार्टी का टिकट देकर मैदान में उतारा है। इनमें फीमेल रेसलर बबीता फोगट, हॉकी के दिग्गज कप्तान रहे संदीप सिंह और मशहूर पहलवान योगेश्वर दत्त का नाम शामिल है।

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बहुत का लोगों को इस बात की जानकारी होगी कुश्ती में देश का नाम रौशन करने वाले योगेश्वर ने भारतीय कुश्ती लीग के इतिहास में सबसे महंगे भारतीय खिलाड़ी होने का रिकॉर्ड बनाया था। 2015 में कुश्ती लीग में उनके लिए जो बोली लगाई गई थी, वह 39.70 लाख रुपये की थी। जबकि ओलिम्पिक विनर और सिलिब्रिटी रेसलर सुशील कुमार के लिए उनसे कम 38.20 लाख रुपये की बोली लगाई गई थी।

माता-पिता नहीं बनाना चाहते थे पहलवान
योगेश्वर के माता-पिता अपने बेटे को पहलवान नहीं बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि बेटा पढ़-लिखकर टीचर बने। पहलवान के दादा भी सोनीपत के एक गांव में स्कूल टीचर थे। जबकि पिता और मां सुशीला देवी भी स्कूल में पढ़ाती थीं। योगेश्वर के छोटे भाई ने पिता के पेशे को ही चुना। मगर योगेश्वर ने घरवालों की उम्मीद से अलग राह पकड़ ली। हालांकि उनकी इस राह से दुनियाभर में कई बार देश का सिर गर्व से ऊंचा उठा।

पहलवान का नाम मनीष रखा गया था। मगर घरवाले प्यार से योगी बुलाते थे। बाद में उनका नाम योगेश्वर ही पड़ गया। 8 साल की मामूली उम्र में बलराज पहलवान योगेश्वर के प्रेरणास्रोत बन गए। देखादेखी पहलवान बनने की इच्छा जागी। और इसी इच्छा की वजह से योगेश्वर अखाड़े में जाने लगे। घरवालों को लगता था कि उनका बेटा अखाड़े में समय बर्बाद कर रहा है। योगेश्वर जब पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे तब उन्होंने पहला मुक़ाबला जीता था। उन्हें अवार्ड में दीवाल घड़ी मिली थी। इस पहली जीत के बाद घरवालों से योगेश्वर को सहयोग मिलने लगा।

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जब पिता की मौत से नहीं टूटे थे योगेश्वर दत्त
इस पहलवान ने 2003 के कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान गोल्ड मेडल जीता था। 2013 में खेल में योगेश्वर के योगदान को देखते हुए सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। योगेश्वर दत्त जब दोहा में 2006 के एशियाड गेम्स में हिस्सा ले रहे थे उनके पिता का निधन हो गया था। घुटने में चोट भी थी। मगर भावुकता और शारीरिक कमजोरी पहलवान के जज्बे पर भारी साबित नहीं हुई। उन्होंने देश के लिए ब्रांज मेडल जीता। इस खिलाड़ी ने 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में भी सोना जीतकर देश का नाम रौशन किया।

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