क्या है चंडीगढ़ विवाद जिसे लेकर हरियाणा सरकार ने बुलाया विशेष सत्र, SYL पर भी पंजाब से खिंचेगी 'तलवार'

इस मुद्दे की एक बार फिर शुरुआत उस वक्त हुई जब केंद्र ने चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय नियम लागू कर दिया। इसके बाद पंजाब सरकार ने एक अप्रैल को विधानसभा का सत्र बुलाया और चंडीगढ़ को पूर्ण रूप से पंजाब को देने का प्रस्ताव पास कर दिया।

चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा के बीच चंडीगढ़ विवाद लगातार गरमाता ही जा रहा है। भगवंत मान सरकार (Bhagwant Mann government) के प्रस्ताव पास करने के बाद अब मनोहर लाल खट्टर सरकार (Manohar Lal Khattar government) ने विधानसभा का स्पेशल सेशन बुला लिया है, जो आज होने जा रहा है। सुबह साढ़े 9 बजे सबसे पहले बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक होगी। इस बैठक में चंडीगढ़ (Chandigarh) पर चर्चा होगी। इसके बाद विधानसभा का सत्र चलेगा। जहां इस मुद्दे को लेकर सरकार निंदा प्रस्ताव पेश करेगी। सत्र के दौरान एसवाईएल  (Satluj Yamuna Link Canal) का मुद्दा भी उठेगा, जिसको लेकर कई सालों से दोनों राज्यो को बीच विवाद चला आ रहा है।

सरकार को विपक्ष का साथ
इस मुद्दे पर कांग्रेस और इनेलो दोनों ही सरकार से साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। जहां कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि इस मुद्दे पर सत्र बुलाने से अच्छा है कि पक्ष-विपक्ष एक साथ प्रधानमंत्री से मिले तो वहीं इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला (Abhay Singh Chautala) ने एक ट्वीट में कहा है कि चंडीगढ़ पर पहला हक हरियाणा का है। उनकी पार्टी इस लड़ाई में किसी भी कुर्बानी से घबराएगी नहीं।

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पहली बार नहीं है विवाद
चंडीगढ़ को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच का विवाद नया नहीं है। यह विवाद उस वक्त से ही है जब 1966 में हरियाणा पंजाब से अलग होकर एक नया राज्य बना था। 56 साल के दौरान यह सातवीं दफा है जब पंजाब ने इस प्रस्ताव को विधानसभा में पेश किया है। इससे पहले 1967,1970,1978,1985,1986 और 2014 में पंजाब में इस प्रस्ताव को पास किया जा चुका है तो वहीं SYL को लेकर हरियाणा में भी साल 2000 के बाद से पांच बार प्रस्ताव पास हो चुका है।

आखिर क्यों चंडीगढ़ बनी दोनों राज्यों की राजधानी
बता दें कि पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा नया राज्य बना। तब चंडीगढ़ को ही दोनों राज्यों की राजधानी बना दिया गया था। चूंकि चंडीगढ़ के पास व्यवस्थाएं भरपूर थी और राजधानी बनने के लिए जो भी जरुरी संसाधन होते हैं सब उपलब्ध थे, इसलिए इस शहर को ही राजधानी के तौर पर चुना गया। यहां की संपत्तियों का 60 फीसदी हिस्सा पंजाब का और 40 प्रतिशत हिस्सा हरियाणा को मिला। केंद्रशासित प्रदेश होने के नाते इस शहर पर केंद्र का कंट्रोल भी रहा है।

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