Research: मोटापे से बच्चों की मेमोरी होती है कमजोर, सोचने की ताकत पर भी पड़ता है असर

Published : Jan 08, 2020, 09:11 AM IST
Research: मोटापे से बच्चों की मेमोरी होती है कमजोर, सोचने की ताकत पर भी पड़ता है असर

सार

हाल ही में हुए एक रिसर्च से पता चला है कि मोटापे का बच्चों की मेमोरी पर बहुत बुरा असर पड़ता है। यही नहीं, इससे उनकी सोचने और निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है। 

हेल्थ डेस्क। हाल ही में हुए एक रिसर्च से पता चला है कि मोटापे का बच्चों की मेमोरी पर बहुत बुरा असर पड़ता है। यही नहीं, इससे उनकी सोचने और निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है। इसके साथ ही, कोई योजना बनाने में भी उन्हें कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह रिसर्च स्टडी वेरमॉन्ट यूनिवर्सिटी और येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिल कर की है। 

10 हजार बच्चों पर हुई स्टडी
इस स्टडी में करीब 10 हजार बच्चों को शामिल किया गया। उनसे हासिल डाटा का अध्ययन कर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि मोटापे का याद्दाश्त और सोचने की शक्ति का क्या असर पड़ता है। यह स्टडी करीब 10 साल तक चली। प्रमुख शोधकर्ता वेरमॉन्ट यूनिवर्सिटी की जेनिफर लॉरेंट ने कहा कि मोटे बच्चों की बीएमआई की जांच और दूसरे तरीकों से किए गए अध्ययन से पता चला कि उनके दिमाग में सेरेब्रल कॉर्टेक्स पतला हो जाता है। सेरेब्रल कॉर्टेक्स वह परत है जो दिमाग के बाहरी हिस्से पर होती है। इसके पतले होने से दिमाग के काम करने की कई क्षमताएं प्रभावित होती हैं। 

दिमाग की हुई स्कैनिंग
शोध के दौरान हर दो साल पर प्रतिभागियों के दिमाग की स्कैनिंग की गई और उनके ब्लड की भी जांच हुई। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पहले भी एक स्टडी में पता चला था कि जो बच्चे ज्यादा मोटे होते हैं, उनकी मेमोरी कमजोर होती है। यही नहीं, उनकी बौद्धिक क्षमता भी सामान्य बच्चों की तरह नहीं होती। कोई योजना बनाने में उन्हें ज्यादा कठिनाई का सामना करना पड़ता है। कई चीजों को वे देर से समझ पाते हैं।

बच्चों के लिए एक्सरसाइज है जरूरी
जेनिफर लॉरेंट का कहना है कि शोध के नतीजों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि पहले हुए शोध में भी ऐसी ही बातें सामने आ चुकी हैं। बच्चों का वजन नियंत्रण में रहे, इसके लिए उनके खानपान पर ध्यान देना जरूरी होगा। साथ ही, बच्चों को नियमित एक्ससाइज करने के लिए भी प्रेरित करना होगा। मोटपा हर हाल में बच्चों के लिए बुरा है। यह स्टडी पीडिएट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित हुई है।   

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