दिवाली के बाद देश की राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर हो गई कि दिल्ली में स्कूल बंद करने पड़े। वायु प्रदूषण बढ़ने से बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ रहे हैं।
हेल्थ डेस्क। दिवाली के बाद देश की राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर हो गई कि दिल्ली में स्कूल बंद करने पड़े। वायु प्रदूषण बढ़ने से बड़ी संख्या में लोग बीमार पड़ रहे हैं। पिछले करीब एक हफ्ते से वायु प्रदूषण (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 500 के स्तर तक चला गया। यह एक गंभीर स्थिति है। वायु प्रदूषण को पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के रूप में मापा जाता है। ये हवा में घुले सूक्ष्म कण होते हैं, जो सांस के के जरिए हमारे फेफेड़ों में पहुंच जाते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मामना है कि दिवाली के बाद दिल्ली और एनसीआर के वायुमंडल पीएम 10 और पीएम 2.5 की मात्रा काफी बढ़ गई। जानते हैं ये क्या हैं और इनका क्या असर होता है।
पर्यवरण विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 10 रेस्पायरेबल पार्टिकुलेट मैटर होता है, जिसके कण हवा में घुले होते हैं। इनका आकार 10 माइक्रोमीटर होता है। इसलिए इन्हें पीएम 10 कहते है। इनसे जो छोटे कण होते हैं, उनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी कम होता है। ये कितने सूक्ष्म होते हैं, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारे शरीर के बाल की साइज पीएम 50 होती है।
हवा में पीएम कणों के बढ़ जाने से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और फेफड़ों से संबंधित बीमारी होने का खतरा रहता है। शरीर में इन सूक्ष्म कणों से बचाव का कोई तंत्र नहीं है। इन सूक्ष्म कणों से बच्चों और बूढ़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। इससे आंखों की तकलीफ भी हो सकती है। अगर लगातार यह प्रदूषण बना रहा तो फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 10 का सामान्य स्तर हवा में 100 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए , लेकिन दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई जगहों पर यह 1600 तक पहुंच चुका है। वहीं, पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 एमजीसीएम होता है, लेकिन यह भी 300 से 500 के स्तर पर पहुंच गया है। इससे स्थिति की भयावहता का अंदाज लगया जा सकता है।
हर साल इस मौसम में दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है। ऐसा दिवाली पर आतिशबाजी की वजह से होता ही है, लेकिन इसके लिए कुछ दूसरे कारण भी जिम्मेवार हैं। दिल्ली में प्रदूषण पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने से भी बढ़ता है। वहीं, बड़े और भारी वाहनों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी इसकी एक बड़ी वजह है। दिल्ली और एनसीआर में लगातार भारी निर्माण कार्य चलते रहते हैं। इससे भी वातावरण मे धूल कण बढ़ जाते हैं, जो इस मौसम में हवा के जरिए बहुत ऊपर नहीं जा पाते। इस प्रदूषण से धुंध बढ़ जाती है और सूरज की रोशनी दिखाई नहीं पड़ती। समझा जा सकता है कि यह कितनी खतरनाक स्थिति है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो दिल्ली और आसापास के इलाके गैस चैंबर में बदल सकते हैं।