बढ़ रहा है डायबिटीज का खतरा, 2025 तक हो सकते हैं देश में 6.9 करोड़ इसके मरीज

देश में डायबिटीज का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। मुख्य रूप से यह जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है। इसके अलावा भी इसके कई कारण हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि 5 वर्षों के दौरान डायबिटीज के मरीजों की संख्या में 266 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। 

हेल्थ डेस्क। मधुमेह या डयबिटीज एक गंभीर बीमारी है। यह पैंक्रियाज में गड़बड़ी पैदा होने से होती है, जिससे इंसुलिन कम बन पाता है। डायबिटीज होने से तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती हैं। इसका दिल और किडनी पर भी बहुत बुरा असर होता है। मुख्य रूप से यह जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है। इसके अलावा भी इसके कई कारण हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि 5 वर्षों के दौरान डायबिटीज के मरीजों की संख्या में 266 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक अनुमान के अनुसार बताया है कि देश में साल 2025 तक डायबिटीज के रोगियों की संख्या 6.9 करोड़ हो सकती है। इस रोग की कोई प्रभावी दवा अब तक नहीं खोजी जा सकी है। जिन लोगों में डायबिटीज की समस्या गंभीर हो जाती है, उन्हें इंसुलिन लेना पड़ता है।

परहेज और हर्बल ट्रीटमेंट से होता है फायदा
सरकार का मानना है कि भारत उन देशों में है, जहां डायबिटीज के मरीजों की संख्या इतनी तेजी से बढ़ रही है। दूसरे देशों में इतने बुरे हालात नहीं हैं। सरकार डायबिटीज के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चला रही है, लेकिन रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह काम आसान नहीं हैं। चिकित्सकों का मानना है कि इस समस्या में हर्बल दवाएं ज्यादा कारगर साबित होती हैं।

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सीएसआईआर की मदद से खोजी गई है दवा 
आयुष मंत्रालय का कहना है कि काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) की मदद से डायबिटीज के इलाज के लिए हर्बल मेडिसिन की खोज की गई है। मंत्रालय का कहना है कि लखनऊ स्थित भारत सरकार के शोध संगठन ने इस दवाई को वैज्ञानिक तौर पर सही बताया है। एमिल फार्मा नाम की कंपनी अभी इस दवाई का उत्पादन कर रही है। इस दवाई का नाम बीजीआर-34 है। मंत्रालय का कहना है कि सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद इस दवा की खोज की है। इसे बहुत प्रभावशाली माना जा रहा है। 

आयुर्वेद और योग की भी ली जा रही है मदद
सरकार का कहना है कि डायबिटीज की चुनौती से निपटने के लिए आयुर्वेद और योग की भी मदद ली जा रही है। फिलहाल राजस्थान, बिहार और गुजरात में डायबिटीज के रोगियों पर इस दवा के प्रभाव को देखा गया है। शुरुआती परीक्षणों में यह बेहद असरदार साबित हुई है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भी इसे लेकर अध्ययन किया है और इसे प्रभावशाली माना है। उनका कहना है कि यह दवा डायबिटीज टाइप 2 के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है। लखनऊ स्थित प्रयोगशालाओं में इसके सफल परीक्षण के बाद अब बड़े पैमाने पर इसके उत्पादन और डायबिटीज के इलाज में इसके इस्तेमाल की योजना सरकार ने बनाई है। 

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