भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल है बुरा, जानें कैसे हो सकता है इसमें सुधार

हमारे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है। स्थितियां दिन-ब-दिन खराब ही होती जा रही हैं।

Abhinav Khare | Published : Feb 28, 2020 10:01 AM IST

मैं लंदन में कुछ वर्षों तक रहा और वहां के पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को देख कर बेहद प्रभावित हुआ। वहां के सरकारी अस्पताल 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को सेवा मुहैया कराते हैं। डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्टाफ का वेतन सरकार तय करती है। जापान में रहने के दौरान मैंने पाया कि वहां सरकार प्राइवेट डॉक्टरों की सेवाओं के लिए फीस निर्धारित करती है। इससे वहां डॉक्टर मरीजों से ज्यादा पैसे नहीं ले सकते। ऐसा करने पर उन पर भारी पेनल्टी लग सकती है। 

जब मैं फ्रांस गया तो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था को मैंने थोड़ा अलग पाया। वहां हर किसी के लिए हेल्थ इन्श्योरेंस करवाना जरूरी है। हेल्थ इन्श्योरेंस की यह व्यवस्था मुनाफे से जुड़ी नहीं है और इसके लिए टैक्स से फंड दिया जाता है। यह पब्लिक इन्श्योरेंस 70 से लेकर 80 प्रतिशत तक स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को कवर करता है। बाकी खर्चे वॉलन्टियरी इन्श्योरेंस के जरिए पूरे किए जाते हैं। इस व्यवस्था से लोगों को इलाज के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च नहीं करने पड़ते। वास्तव में, 95 फीसदी आबादी वॉलन्टियरी इन्श्योरेंस के जरिए स्वास्थ्य सुविधाएं हासिल करती है। सरकार वहां दवाइयों और दूसरे मेडिकल खर्चों की कीमत निर्धारित करती है। इसके लिए सरकार जीडीपी का 11.8 प्रतिशत खर्च करती है।

जब मैं स्विट्जरलैंड गया तो वहां के हेल्थकेयर सिस्टम को मुझे करीब से देखने का मौका मिला। यह अमेरिका के अफोर्डेबल केयर एक्ट से मिलता-जुलता था। यहां प्राइवेट कंपनियां इन्श्योरेंस मुहैया कराती हैं, जिसे लेना हर किसी के लिए अनिवार्य है। आम तौर पर यह मुनाफे से जुड़ा नहीं है, लेकिन कुछ खास सेवाओं और अस्पतालों के लिए कंपनियां मुनाफा लेती हैं। वहां मिडल इनकम ग्रुप के लिए भी टैक्स बहुत ही कम है।

इन देशों के हेल्थकेयर सिस्टम को देखने के बाद मुझे यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि भारत में 1.3 बिलियन लोगों के लिए सिर्फ 10 लाख रजिस्टर्ड डॉक्टर हैं। हमारे यहां 10,189 लोगों पर सिर्फ एक एलोपैथिक सरकारी डॉक्टर है और अगर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के दावे को सच मानें तो भारत में आधे से ज्यादा डॉक्टर अनरजिस्टर्ड हैं और एलोपैथी में उनके पास कोई डिग्री नहीं है। बड़े शहरों की हालत कुछ अच्छी है। वहां 58 प्रतिशत प्रशिक्षित डॉक्टर हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 18 प्रतिशत डॉक्टर ही रजिस्टर्ड हैं। भारत स्वास्थ्य सेवाओं पर अपनी जीडीपी का महज 1.2 प्रतिशत खर्च करता है, जो म्यांमार, पाकिस्तान और कम्बोडिया से थोड़ा ही ज्यादा है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत इतनी बुरी है कि यहां 2046 लोगों पर हॉस्पिटल्स में सिर्फ एक बेड उपलब्ध है और 90,343 लोगों पर सिर्फ एक सरकारी अस्पताल। देश के 10 लाख डॉक्टरों में सिर्फ 10 प्रतिशत सरकारी स्वास्थ्य सेवा में जाते हैं। सरकारी अस्पतालों की हालत कितनी खराब है, यह बताने की जरूरत नहीं है। वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर, मैनेजमेंट, स्टाफ और साफ-सफाई की भारी कमी है। 

हमारे देश की आबादी का 22.4 प्रतिशत हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे है, जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में पूरी तरह अव्यवस्था का माहैल है। वहां मरीजों पर कोई ध्यान देने वाला नहीं। भारत ने साल 2017-18 में अपनी जीडीपी का 1.28 फीसदी खर्च किया। 2016-17 में यह आंकड़ा 1.02 प्रतिशत था। जबकि भारत का प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च 200-10 में 621 रुपए से दोगुना से भी ज्यादा बढ़ कर 2017-18 में 1,657 रुपए हो गया। जब हम दुनिया के दूसरे देशों से तुलना करते हैं तो यह अभी भी बहुत कम है। अमेरिका अपनी जीडीपी का 18 प्रतिशत पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम पर खर्च करता है, जो प्रति व्यक्ति सालाना 10,000 डॉलर पड़ता है। भारत का स्वास्थ्य पर खर्च ब्रिक्स देशों में भी सबसे कम है। भारत की वर्तमान सरकार ने यह वादा किया है कि पब्लिक हेल्थ पर खर्च बढ़ा कर साल 2025 तक इसे जीडीपी का 2.5 प्रतिशत किया जाएगा, लेकिन फिर भी यह ज्यादा नहीं है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के 2013-14 में किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में 36 मिलियन परिवार सबसे ज्यादा गंभीर बीमारियों पर खर्च करते हैं। इनमें 25 मिलियन परिवार ग्रामीण क्षेत्रों के हैं और 11 मिलियन शहरी इलाकों के। हमारे देश के 39 प्रतिशत गरीब लोगों को किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा हासिल नहीं है। इसका मतलब है कि हमारे देश की एक-तिहाई आबादी को किसी तरह की स्वास्थ्य सुविधा से वंचित है। इस स्थिति को बदला जा सकता है अगर हमारा हेल्थकेयर सिस्टम मजबूत हो। इसके अभाव में लोगों को प्राइवेट हेल्थकेयर सिस्टम का सहारा लेना पड़ता है, जो इतना महंगा कि लोग कर्ज में डूब जाते हैं। 

कैसे होगा समस्या का समाधान
इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले हेल्थकेयर सिस्टम पर सरकार को अपना खर्च बढ़ाना होगा। सरकारी हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में इस तरह का सुधार करना जरूरी है कि लोगों की पहुंच यहां तक आसान हो सके और यहां सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार हो। इसके साथ ही सरकार को प्राइवेट हेल्थकेयर सिस्टम में भी दखल देना होगा और वहां अनाप-शनाप फीस लिए जाने पर रोक लगानी होगी। सरकार को चाहिए कि वह प्राइवेट हॉस्पिटल्स में दी जाने वाली सुविधाओं और इलाज के लिए ली जाने वाली फीस पर नियंत्रण करे। 

प्रधानमंत्री मोदी की आयुष्मान भारत योजना निश्चित रूप से सही दिशा में एक कदम है, लेकिन अभी रास्ता काफी लंबा है। मैं यह उम्मीद करता हूं कि सरकार ऐसे कदम उठाएगी, जिससे सबों को फायदा हो सके। कहा गया है कि स्वास्थ्य ही धन है। कोई भी देश तब तक समृद्ध और खुशहाल नहीं हो सकता, जब तक वहां के नागरिकों को मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिले।

कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीइओ हैं और 'डीप डाइव विद एके' नाम के डेली शो के होस्ट भी हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का बेहतरीन कलेक्शन है। उन्होंने दुनिया के करीब 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा की है। वे एक टेक आंत्रप्रेन्योर हैं और पॉलिसी, टेक्नोलॉजी. इकोनॉमी और प्राचीन भारतीय दर्शन में गहरी रुचि रखते हैं। उन्होंने ज्यूरिख से इंजीनियरिंग में एमएस की डिग्री हासिल की है और लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए हैं।

Share this article
click me!