युवा भारतीयों को दिल की बीमारी का अधिक खतरा, जानें इसके पीछे की वजह

42 साल की उम्र में बीजेपी नेता और एक्ट्रेस सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) का दिल का दौरा पड़ने की वजह से निधन हो गया। इससे पहले भी कई सेलेब्स कम उम्र में दिल की बीमारी की वजह से इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं। आंकड़े बताते हैं कि कम उम्र में हार्ट-अटैक के मामले यहां बढ़ते जा रहे हैं।

Asianet News Hindi | Published : Aug 23, 2022 9:27 AM IST

हेल्थ डेस्क. कोरोनरी आर्टरी डिजीज (CAD) का सबसे ज्यादा खतरा भारतीय युवाओं पर मंडरा रहा है। हाई कोलेस्ट्रॉल के कारण हार्ट की मांसपेशियों की ब्लड सप्लाई में रुकावट होती है, जिसकी वजह से सीएडी होता है। लंबे वक्त तक यह माना जाता था कि यह बीमारी बुजुर्गों में होती है। लेकिन हाल में जिस तरह के केसेज सामने आए हैं वो परेशान करने वाली है। हाल ही में बॉलीवुड गायक कृष्णकुमार कुन्नाथ, अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला ,पुनीत राजकुमार और सोनाली फोगाट की मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई। ये सभी युवा सितारे हैं। 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने कुछ चौंकाने वाले रिपोर्ट पेश किए। उन्होंने बताया कि भारतीयों में सीएडी (CAD) की दर किसी भी अन्य जातीय समूह की तुलना में  50-400% अधिक है।जबकि पश्चिम में सीएडी का प्रसार पिछले तीन दशकों में आधा हो गया है। जबकि भारत में यह दोगुनी हो गई है और इसमें कमी को कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।भारतीयों में पहली बार दिल का दौरा पड़ने की औसत उम्र में 20 साल की कमी आई है। यह एक तथ्य है जिसने हाईप्रोफाइल लोगों की मौत से उजागर हुआ है।

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हाईप्रोफाइल मानी जाने वाली बीमारी के जद में हर वर्ग

भारतीय पुरुषों में पहला दिल का दौरा 50 वर्ष से कम आयु के 50% और 40 वर्ष से कम आयु में 25% में हुआ। पहले सीएडी की बीमारी हाईप्रोफाइल लाइफस्टाइल जीने वाले लोगों के लिए माना जाता था। लेकिन अब यह सबको अपना शिकार बना रहा है। महिला हो या फिर गरीब हर कोई इस बीमारी का शिकार हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं। यहां 3-4 प्रतिशत लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। लेकिन शहरी क्षेत्र में सीएडी के 8-10% है। 

भारतीयों में क्यों फैल रहा है सीएडी?

सवाल है कि भारतीयों में दिल की बीमारी क्यों फैल रही है। जबकि पश्चिम देशों की तुलना में यहां के लोगों में हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल,मोटापा और धूम्रपान कम हैं। इस प्रश्न का उत्तर हमारे और हमारे तत्काल परिवेश दोनों में है।भारतीय आज एक बड़े सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने हमें पिछले तीन दशकों में लाइफस्टाइल और फूड चेंज के बारे में बताया है। भारत की एक बड़ी आबादी शहर में रहने लगी है। जिनके शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है। कार्बोहाइड्रेट और रिफाइंड शुगर का अधिक इस्तेमाल होने लगा है। ट्रांस फैट और  एथेरोजेनिक लिपिड  से भरे फूड हम लेने लगे हैं। इसके साथ मनोवैज्ञानिक तनाव भी ज्यादा युवाओं पर पड़ रहा है। ये सभी मिलकर मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और ब्लड में खराब कोलेस्ट्रॉल युवाओं में बढ़ा रहे हैं। जिससे सूजन, कोलेस्ट्रॉल का जमाव और रक्त के थक्का जमता है और दिल का दौरा पड़ता है। इसके अलावा कैंसर, स्ट्रोक, डिप्रेशन, बालों का झड़ना, यौन कामेच्छा में कमी आदि जैसी बीमारियां हो रही है। इसके अलावा सीडीएस आनुवंशिक रूप से भी प्रभावित करता है।

जापान में अमेरिका की तुलना में 5 गुना कम CAF दर

जापान में संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में पांच गुना कम सीएडी दर है। जबकि यहां 74 प्रतिशत ज्यादा लोग स्मोकिंग अमेरिका की तुलना में करते हैं। जापान ने अपनी आर्थिक ताकत और शहरीकरण के साथ-साथ अपनी सीएडी दर में 60% की कमी की है। उसने खराब कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों की बजाय अच्छे कोलेस्ट्रॉल वाली चीजों के खपत पर जोर दिया। मछली खाने के लिए लोगों को प्रेरित किया है।

चीन ने भी खुद को CAD से बचाए रखा है

चीन में धूम्रपान और हाई ब्लड प्रेशर के बावजूद सीएडी के मामले ज्यादा नहीं बढ़े। इसके पीछे वजह यहां अनुकूल लिपिड प्रोफाइल काफी हद तक जिम्मेदार है। लेकिन पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया पर सीएडी का खतरा मंडरा रहा है। 

कोरोनरी आर्टरी डिजीज से बचने के लिए क्या करें?

जिस तरह के केस सामने आए हैं उसमें युवाओं में दिल की बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। इसलिए 35 की उम्र के बाद लोगों को अपने बीपी, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच नियमित करवानी चाहिए। अगर कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है इसके बावजूद भी जांच करानी चाहिए। अक्सर 40 के बाद महिला-पुरुष दोनों के शरीर में कुछ बदलाव होते  हैं। इनकी वजह से हार्मोनल असंतुलन और अन्य परेशानियां उभर सकती हैं। नियमित जांच में यह सामने आ जाती हैं। वक्त पर इलाज मिल जाता है।

हेल्दी रूटीन फॉलो करना बहुत जरूरी है। एक्सरसाइज को जीवन में शामिल करें। पोषण और संतुलित खाना-पान लें। धूम्रपान और शराब से दूर रहें। यदि बचपन में आपके साथ कोई ऐसी समस्या रही है जिसका असर दिल पर पड़ सकता है तो बड़े होने पर नियमित चेकअप कराए। इसके अलावा अगर परिवार में किसी को दिल के बीमारी से जुड़ी कोई हिस्ट्री है तो भी खुद को लेकर सतर्क रहे और चेकअप कराते रहें।

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