तिलक को अंग्रेज कहते थे अशांति का जनक, दिया था नारा- स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) को अंग्रेज भारतीय अशांति का जनक कहते थे। उन्होंने स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा का नारा दिया था। 

नई दिल्ली। देश अपनी आजादी का 75वां सालगिरह मना रहा है। यह साल हर भारतवासी के लिए महत्वपूर्ण है। इसी कड़ी में एशियानेट हिंदी आप तक आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर सपूतों की कहानी पहुंचा रहा है। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन्हें भारतीय क्रान्ति का जनक कहा था।

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरि में हुआ था। इनका पूरा नाम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक था। तिलक का जन्म एक सुसंस्कृत मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर रामचंद्र तिलक था। गंगाधर रामचंद्र तिलक पहले रत्नागिरि में सहायक अध्यापक थे और फिर पूना तथा उसके बाद ठाणे में सहायक उप शैक्षिक निरीक्षक हो गए थे। 1876 में बाल गंगाधर तिलक ने पूना (पुणे) में गणित और संस्कृत में डेक्कन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1879 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई) से कानून की पढ़ाई की। इसके बाद तिलक ने पूना के एक निजी स्कूल में गणित पढ़ाने का फैसला किया। यहां से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ।

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1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की
तिलक ने लोगों को अंग्रेजी भाषा में शिक्षित करने के लिए 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की। उस समय वह और उनके सहयोगी मानते थे कि अंग्रेजी उदार और लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए एक शक्तिशाली ताकत है। तिलक ने मराठी में 'केसरी' और अंग्रेजी में 'द महरात्ता' (The Mahratta) जैसे समाचार पत्रों के जरिए लोगों को जागृत करना शुरू कर दिया। 

धीरे-धीरे इनकी लोकप्रियता पूरे भारत में फैलने लगी। उन्होंने समाचार पत्रों के जरिए ब्रिटिश साम्राज्य की तीखी आलोचना की। इन पत्रों के जरिए तिलक ने लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसलिए उन्हें अंग्रेजों द्वारा 'भारतीय अशांति का जनक' कहा जाता था। उन्होंने उनपर देशद्रोह का आरोप लगाया और भड़काऊ लेख-लिखने के आरोप में जेल भेज दिया।  

बाल गंगाधर तिलक की सरकार विरोधी गतिविधियों ने एक समय उन्हें ब्रिटिश सरकार के साथ टकराव की स्थिति में ला खड़ा किया था। उनकी सार्वजनिक सेवाएं उन्हें मुकदमे और उत्पीड़न से नहीं बचा सकीं। 1897 में उनपर पहली बार राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया। इस मुकदमे में और सजा के कारण उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली।

बंगाल विभाजन को लेकर देश में दंगे भड़के
1905 में बंगाल के पहले विभाजन के बाद पूरे देश में दंगे भड़क उठे थे और हिंसक आंदोलन शुरू हो गए थे। आंदोलन के समर्थन में तिलक ने चार प्रमुख नारे लगाए। स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज्य। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकत्रित करने के उद्देश्य से एक सार्वजनिक गणेशोत्सव भी शुरू किया।

1907 में गरम दल में शामिल हुए तिलक
1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गई थी। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इसके बाद बंगाल विभाजन का विरोध कर रहे तिलक को 1908 में अंग्रेजी हूकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था। उन्हें म्यांमार के मांडले जेल भेज दिया गया। इस अवधि में तिलक ने गीता का अध्ययन किया और 'गीता रहस्य' नामक भाष्य भी लिखा। 

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1914 में तिलक के जेल से छूटने से  बाद जब उनका 'गीता रहस्य' प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार-प्रसार आंधी-तूफान की तरह बढ़ा और जनमानस उससे अत्यधिक आंदोलित हुआ। इसके बाद अप्रैल 1916 में बाल गंगाधर तिलक ने 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा' के नारे के साथ इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। तिलक ने मराठी में 'मराठा दर्पण' व 'केसरी' नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए, जो जनता में काफी लोकप्रिय हुए। तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीनभावना की बहुत आलोचना की। वीर लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक का निधन मुंबई में 1 अगस्त 1920 को हुआ। 

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बाल गंगाधर तिलक के कुछ विचार

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