
नई दिल्ली. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में वीओ चिदंबरम पिल्लई (Valliyappan Olaganathan Chidambaram Pillai ) का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वे ऐसे क्रांतिकारी रहे जिन्होंने अंग्रेजों को वाणिज्यिक साम्राज्य की चूलें हिला दी थीं। उन्होंने तमिल साहित्य की भी खूब सेवा की थी।
कौन थे वीओ चिदंबरम पिल्लई
चिदंबरम का जन्म 1872 में तूतीक्कुडी के ओट्टापिदारम में एक धनी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने पिता का रास्ता चुना और वकील बने। चिदंबरम को साहित्य के प्रति प्रेम था। बेहद कम उम्र से ही चिदंबरम में राष्ट्रवाद के प्रति जुनून पैदा हो गया। वे साहित्य के प्रति प्रेम और गरीबों के प्रति गहरी सहानुभूति रखते थे। 1904 के बंगाल विभाजन के बाद चिदंबरम राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। वे स्वदेशी आंदोलन के प्रबल प्रचारक और तिलक के प्रशंसक बन गए। उन्हें अरबिंदो घोष और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं द्वारा समर्थित प्रखर राष्ट्रवाद से भी जोड़ा गया।
चिदंबरम ने चुना अलग रास्ता
चिदंबरम पिल्लई ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए अनूठा रास्ता चुनकर इतिहास में अपना स्थान सुनिश्चित किया। कांग्रेस की गतिविधियों में शामिल होने के अलावा पिल्लई ने अपनी खुद की एक शिपिंग कंपनी शुरू करके अंतरराष्ट्रीय शिपिंग में अंग्रेजों को चुनौती दे दी। ब्रिटिश इंडियन स्टीम नेविगेशन कंपनी द्वारा चलाए जा रहे जहाजों के माध्यम से टूटुकुडी-सीलोन समुद्री मार्ग में ब्रिटिश एकाधिकार को तोड़ने का काम किया। पिल्लई ने इस मार्ग को चलाने के लिए स्वदेशी स्टीम नेविगेशन नाम की कंपनी शुरू कर दी और अंग्रेजो को चुनौती दी।
अंग्रेजों ने किया परेशान
ब्रिटिश अधिकारी पिल्लई के काम से क्रोधित हो गए और पिल्लई को कई तरह से परेशान करने लगे। उन्होंने उसे अपने जहाज रखने से भी रोकने की कोशिश की। पिल्लई ने पूरी दुनिया की यात्रा करके और एसएस गैलिया नामक अपना खुद का जहाज खरीदा और वापसी की। अंग्रेजों ने उनके टिकट किराए में कटौती करके उनके व्यापार को खत्म करने की कोशिश की। अंत में चिदंबरम पिल्लई को अन्य राष्ट्रवादी सुब्रमण्यम शिव के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप लगा कि उन्होंने बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने के लिए भाषण दिया। पिल्लई की कंपनी का खात्मा हो गया और जहाज की नीलामी कर दी गई।
तमिल साहित्य को किया समर्पित
जेल से रिहा होने के बाद पिल्लई ने अपनी राजनीतिक गतिविधियां जारी रखीं। उनके साथियों में महान कवि सुब्रमण्यम भारती भी थे। पिल्लई ने महात्मा गांधी के साथ पत्र व्यवहार किया था। उन्होंने ब्रिटिश मिलों में मजदूरों को संगठित किया और कम मजदूरी के खिलाफ हड़ताल की। उन्होंने तिरुकुरल और तोलकापियम के लिए व्याख्याएं लिखकर तमिल साहित्य के लिए जीवन सपर्पित कर दिया। 1936 में टुटुकुडी कांग्रेस कार्यालय में उनका निधन हुआ, तब 64 वर्ष के थे। पिल्लई जिन्होंने ब्रिटिश वाणिज्यिक साम्राज्य को भयभीत कर दिया था, अंततः गरीबी में अंतिम समय गुजार रहे थे।
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