भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कवि प्रदीप का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने ऐसी-ऐसी रचनाएं की जिसने भारतीय जनमानस को जगाने का काम किया।
नई दिल्ली. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गीतों ने भारतीय लोगों को राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कर दिया। भारतीय सिनेमा उद्योग स्वतंत्रता संग्राम में गहराई से शामिल नहीं हुआ था लेकिन कुछ गीतकार व फिल्मकार ऐसा कर रहे थे। गीतकार कवि प्रदीप व संगीतकार अनिल विश्वास ऐसे लोग थे जिन्हें राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा देने वाले गाने बनाने के लिए गिरफ्तारी वारंट का सामना करना पड़ा। लेकिन वे अपने काम से विचलित नहीं हुए। कवि प्रदीप के गीतों में भारतीय संस्कृति, परंपरा को बचाने की अपील होती थी।
भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका
1943 के भारत छोड़ो आंदोलन ने देश को झकझोर दिया था। उसी समय ज्ञान मुखर्जी द्वारा निर्देशित नई फिल्म किस्मत रिलीज हो गई। फिल्म के नायक अशोक कुमार नायक थे। फिल्म के एक समूह गीत ने दर्शकों को पहले से ही राष्ट्रवादी उत्साह से भर दिया था। जिसके बोल थे- दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदुस्तान हमारा है। अरे, विदेशियों, बाहर रहो, हिंदुस्तान हमारा है। भारत छोड़ो आंदोलन का भी यही संदेश था। तब यह गीत आंदोलन का पसंदीदा मंत्र जैसा बन गया। इससे बौखलाई ब्रिटिश सरकार ने कवि प्रदीप और अनिल बिस्वास दोनों के खिलाफ वारंट जारी किया।
कौन थे कवि प्रदीप
मध्य प्रदेश के उज्जैन में जन्मे कवि प्रदीप का वास्तविक नाम पंडित रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। 1940 में फिल्म बंधन के लिए लिखे गए उनके गीत चल रे नौजवान ने भी राष्ट्रीय आंदोलन को बहुत ऊर्जा प्रदान की। स्वतंत्रता के बाद के समय में भी प्रदीप के गीतों ने देशभक्ति के लिए प्रेरित किया था। उनमें से प्रमुख लता मंगेशकर द्वारा गाया गया अमर गीत ऐ मेरे वतन के लोगों है। यह गीत 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीदों की विधवाओं के लिए धन जुटाने के लिए दिल्ली में के समारोह में गाने के लिए लिखा गया था। इस गीत ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों में आंसू ला दिए थे। नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ एस राधाकृष्णन के साथ समारोह में भाग लिया था। कवि प्रदीप ने पांच दशक लंबे करियर में करीब 1700 गाने लिखे। उन्हें 1997 में सिनेमा उद्योग में सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कवि प्रदीप का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
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