India@75: जनजातियों की कानूनी लड़ाई लड़ते थे बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ, अंग्रेजों को दी थी चुनौती

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ का नाम अदब से लिया जाता है। उन्होंने इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई की थी लेकिन भारत में जनजातियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार को लेकर वे मुखर थे।
 

Manoj Kumar | Published : Jul 28, 2022 9:33 AM IST / Updated: Aug 04 2022, 12:23 PM IST

नई दिल्ली. केरल में रहने वाले बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ को लोग प्यार से रोसापू दुरई कहते थे। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे महात्मा गांधी के भी प्रिय थे और प्रख्यात संपादक थे। जॉर्ज जोसेफ ने दक्षिण भारत के ट्राइबल्स लोगों की कानूनी लड़ाई लड़ने का जिम्मा लिया था और कई बड़े केस की पैरवी की थी। उन्हें लोग रोसापू दुरई कहते थे।

कौन थे बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ
बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ का जन्म 1887 में केरल के चेंगन्नूर में हुआ था। जब वे इंग्लैंड में कानून के छात्र थे, तब मैडम कामा, कृष्ण वर्मा, वी डी सावरकर जैसे भारतीय राष्ट्रवादियों के संपर्क में आए। भारत लौटने पर जॉर्ज जोसेफ ने पहले चेन्नई और फिर मदुरै में बैरिस्टर के रूप में कानून की प्रैक्टिस शुरू कर दी। वे होमरूल आंदोलन में भी सक्रिय रहे। मदुरै में उन्होंने पिरामलाई कल्लार जनजाति का मुद्दा उठाया। यह जनजाति ब्रिटिश सरकार के आपराधिक जनजाति अधिनियम के खिलाफ लड़ रही थी, जिसकी वजह से पूरे पिरामलाई कल्लार समुदाय को अपराधी बना दिया गया था। 

अंग्रेजों ने किया भीषण नरसंहार
जॉर्ज ने पुलिस द्वारा जबरन उंगलियों के निशान रिकॉर्ड करने के प्रयासों का विरोध किया तो कल्लर जनजाति के 17 सदस्यों की हत्या कर दी गई। सैकड़ों लोगों को हाथों और पैरों में जंजीर से बांधकर स्थानीय दरबार तक सड़क से कई मील पैदल चलने को कहा गया। जनजाति के लोगों पर यातना और गिरफ्तारी आम हो गई थी। जॉर्ज जोसेफ ने जनजातियों के लिए अदालतों और बाहर भी लड़ाई लड़ी। ब्रिटिश आपराधिक कृत्य के खिलाफ संघर्ष किया। इससे वे लोगों के प्रिय बन गए और लोग उन्हें रोसाप्पू दुरई कहने लगे। इस समुदाय में पैदा हुए कई बच्चों को अभी भी जोसेफ की स्मृति में रोसाप्पू नाम दिया जाता है। 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
जॉर्ज जोसेफ ने मदुरै में भारत के सबसे पुराने ट्रेड यूनियनों में से एक की स्थापना की। एक बार होम रूल मूवमेंट की नेता एनी बेसेंट के निमंत्रण पर लंदन की यात्रा के दौरान जोसेफ को जिब्राल्टर में हिरासत में ले लिया गया और भारत वापस भेज दिया गया। 1919 में जोसेफ गांधीजी से मिले और राष्ट्रीय आंदोलन में अधिक सक्रिय हो गए। उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होना बेहतर समझा। उन्होंने गांधीजी और राजाजी सहित अपने घर पर कई राष्ट्रवादी नेताओं की मेजबानी की। सुब्रमण्य भारती ने जोसेफ के घर पर रहते हुए ही अपनी प्रसिद्ध विदुथलाई कविता लिखी थी। 

द इंडिपेंडेंट के संपादक बने
मोतीलाल नेहरू ने जॉर्ज जोसेफ को राष्ट्रवादी समाचार पत्र द इंडिपेंडेंट का संपादक नियुक्त किया। जोसेफ को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लेख लिखने के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बाद में उन्होंने राजाजी को गांधीजी के यंग इंडिया के संपादक के रूप में स्थान दिया। जोसेफ अपनी पत्नी सुसान के साथ साबरमती आश्रम में रहे। 1924 में जोसेफ को केरल में वैकोम सत्याग्रह में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया गया। वह महिलाओं के अधिकारों और अंतर्धार्मिक विवाहों के मुखर समर्थक थे। जोसेफ का 50 वर्ष की आयु में 1938 में मदुरै में निधन हो गया। वे प्रख्यात पत्रकार पोथेन जोसेफ के भाई थे।

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