अरुण खेत्रपाल ने 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में अदम्य साहस का परिचय दिया था। उन्होंने दुश्मन के 10 से अधिक टैंकों को नष्ट कर दिया था। उनके अपने टैंक में आग लग गई थी, लेकिन वह नहीं रुके। उन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र दिया गया था।
नई दिल्ली. भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए। आजादी के बाद भारत ने कई चुनौतियों का सामना किया। चीन और पाकिस्तान से कई जंग हुए। इन लड़ाइयों में भारतीय सेना के वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। आज हम ऐसे ही वीर योद्धा अरुण खेत्रपाल के बारे में बता रहे हैं।
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर, 1950 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। इनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल एमएल खेत्रपाल भारतीय सेना में थे। अरुण के दादा पहले विश्व युद्ध और पिता दूसरे विश्व युद्ध और 1965 की लड़ाई में लड़ चुके थे। अरुण का बचपन से शौक सेना में शामिल होने का था। वह एक एथलीट भी थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल से हुई। 1967 में वे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए। उसके बाद वे भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल किए गए। 13 जून 1971 में उन्हें 17 पूना हार्स में तैनाती मिली।
10 से ज्यादा टैंकों को किया नष्ट
16 दिसम्बर 1971 के युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने पंजाब-जम्मू सेक्टर के शंकरगढ़ में दुश्मन सेना के 10 से ज्यादा टैंक नष्ट कर दिए थे। दुश्मनों के टैंक को बर्बाद करते समय उनके खुद के टैंक में भी आग लग गयी थी। कमाण्डर ने उन्हें टैंक छोड़कर लौटने का आदेश दिया था। अरुण जानते थे कि मोर्चे पर डटे रहना दुश्मन को रोकने के लिए जरूरी है। उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए पीछे हटना मंजूर नहीं किया। वह लड़ते रहे और अपने प्राण कुर्बान कर दिए। एक भी पाकिस्तानी टैंक अरुण के पार नहीं जा पाया था।
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21 साल की उम्र में मिला परमवीर चक्र
इस अदम्य साहस को देखते हुए उनको देश के सबसे बड़े सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्हें यह सम्मान मरणोपरान्त दिया गया था। अरुण खेत्रपाल को मात्र 21 साल की उम्र में यह सम्मान मिला था।