India@75: यह है दक्षिण का जलियांवाला बाग, अंग्रेजों की अंधाधुंध फायरिंग में मारे गए थे 17 आदिवासी

Published : Aug 12, 2022, 05:57 PM ISTUpdated : Aug 12, 2022, 05:59 PM IST
India@75: यह है दक्षिण का जलियांवाला बाग, अंग्रेजों की अंधाधुंध फायरिंग में मारे गए थे 17 आदिवासी

सार

तमिलनाडु के मदुरै जिले के उसिलामपट्टी के पास स्थित पेरुंगमनल्लूर गांव को दक्षिण का जलियांवाला बाग कहा जाता है। यहां ब्रिटिश पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में 17 आदिवासी मारे गए थे। 

नई दिल्ली। तमिलनाडु के मदुरै जिले के उसिलामपट्टी के पास स्थित पेरुंगमनल्लूर गांव को दक्षिण का जलियांवाला बाग कहा जाता है। यहां ब्रिटिश पुलिस ने 3 अप्रैल 1920 को आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिससे पिरामलाई कल्लर जनजाति के 17 आदिवासी मारे गए थे। फायरिंग का उद्देश्य आदिवासियों के आंदोलन को दबाना था।

ब्रिटिश हुकूमत 1911 में एक काला कानून लेकर आई थी। आपराधिक जनजाति अधिनियम नामक इस कानून से पूरे समुदाय को अपराधी घोषित किया जाता था। इसके खिलाफ आदिवासियों ने उग्र आंदोलन शुरू कर दिया था। पुलिस जबरन उंगलियों के निशान लेती थी। आदिवासियों ने इसका विरोध किया था। 3 अप्रैल 1920 को आदिवासियों ने पुलिस को उनके गांव पेरुंगमनल्लूर में प्रवेश करने से रोक दिया था। इससे नाराज ब्रिटिश पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी की थी। 

 

विशाल गड्ढे में फेंक दिए गए थे शव
पुलिस ने सभी शवों को एक बैलगाड़ी में ले जाकर नदी के किनारे खोदे गए एक विशाल गड्ढे में फेंक दिया था। सैकड़ों लोगों को जंजीरों में बांधकर तिरुमंगलम के दरबार तक कई मील पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया था। पुलिस ने कई दिनों तक आदिवासियों को यातना दी और उन्हें गिरफ्तार किया। 

यह भी पढ़ें- सीवी रामन ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को दिलाई थी ख्याति, रामन प्रभाव की खोज ने दिलाया था नोबल पुरस्कार

आदिवासियों के मुद्दे को बैरिस्टर जॉर्ज जोसेफ ने उठाया था। वह प्रसिद्ध राष्ट्रवादी और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता थे, जो बाद में एक प्रसिद्ध संपादक और गांधीजी के प्रिय साथी बन गए थे। क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट में 1870 के दशक में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में पेश किए गए कई कानून शामिल थे। इनमें से पहला कानून 1871 में लाया गया था जो उत्तर और पूर्वी भारत में रहने वाले जनजातियों के लिए लागू था।

यह भी पढ़ें- India@75: जानें कौन थे केरल के भगत सिंह, जिनके अंतिम शब्द आप में जोश भर देंगे...

1911 में मद्रास प्रेसीडेंसी के लिए अधिनियम पेश किया गया था। स्वतंत्रता के समय तक देश भर में लगभग 14 लाख लोगों को इस अधिनियम द्वारा अपराधी घोषित किया गया था। 1949 में स्वतंत्रता के बाद इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया था। आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून का असर कई जनजाती समुदाय पर है। उनके साथ अधिकारियों और बाकी समाज द्वारा "पूर्व-अपराधी जनजाति" कहकर भेदभाव किया जाता है।

PREV

Recommended Stories

JEECUP Admit Card 2024 released: जेईईसीयूपी एडमिट कार्ड जारी, Direct Link से करें डाउनलोड
CSIR UGC NET 2024 रजिस्ट्रेशन लास्ट डेट आज, csir.nta.ac.in पर करें आवेदन, Direct Link