धान रोपनी से पहले झारखंड के आदिवासी किसान क्यो करते हैं अषाढ़ी पूजा? इस दिन का उनके जीवन में क्या है खास महत्व

अषाढ़ी एकादशी रविवार 10 जुलाई को है। झारखंड के आदिवासी किसानों के लिए यह दिन होता है खास। वे लोग अलग-अलग रूप में अपने अराध्य को खुश करते हैं। धान की रोपनी से पहले की जाती है यह पूजा। यहां लोग प्रकृति से लेते है इजाजत।

Sanjay Chaturvedi | Published : Jul 9, 2022 7:01 AM IST / Updated: Jul 09 2022, 01:35 PM IST

रांची. झारखंड में आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व रहता है।  आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहते हैं। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। यह भगवान विष्णु का शयन काल होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं। इस साल 10 जुलाई को अषाढ़ी एकादशी है। झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है। यहां के आदिवासियों की इस दिन अलग ही मान्यता है। यहां के आदिवासी किसान धान की रोपनी से पहले अषाढ़ी पूजा करते हैं। बता दें कि धान की खेती में झारखंड के आदिवासी किसान अलग-अलग रूप में अपने आराध्यदेव की पूजा-अर्चना करते हैं ।

ये लोग लेते है, नेचर से इजाजत
झारखंड एक अनोखा प्रदेश है। यहां की रीति-रिवाज, परंपरा और प्रकृति के साथ लोगों का जुड़ाव काफी रोचक है। यहां के आदिवासी-मूलवासी समाज हर काम से पहले प्रकृति से इजाजत लेते हैं। यहां कृषि कार्य से जुड़ी कई परंपराएं प्रचलित है। धान की खेती करने के पहले खेत में हल जोतने से लेकर खेत से धान काटकर खलिहान तक ले जाने और फिर नया अन्न खाने के वक्त भी पूजा-अर्चना की जाती है। क्षेत्र के अलग-अलग गांवों में आषाढ़ी पूजा करने का सिलसिला शुरू हो चुका है। लोग पूरे विधि-विधान के साथ अपने इष्टदेव की आराधना कर धान की बुआई शुरू करेंगे। 

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मुर्गा, भेड़ या बकरे की बलि देते है किसान, गांव-गांव में होता है आयोजन
आषाढ़ी पूजा प्रकृति के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए किया जाता है। अपने इष्ट की पूजा कर आदिवासी किसान स्वस्थ पौधा पनपने, अच्छी वर्षा होने, कीट-पतंगों से फसल की रक्षा करने, किसी प्रकार की अनहोनी से बचाने, अच्छी पैदावार होने और सभी की कुशलता की कामना करते हैं। इस दौरान माझी बाबा जाहेरथान में इष्ट देव से फसलों के निरोग और निर्बाध पनपने की कामना करते हैं। इस अवसर पर मुर्गा, भेड़ या बोदा यानि बकरे की बलि भी दी जाती है। मान्यता है कि आषाढ़ी पूजा नहीं करने वालों का कृषि कार्य बाधित हो जाता है और उसपर विपत्ति आती है। इसलिए इस पर्व का आयोजन गांव-गांव में किया जाता है। 

आषाढ़ी एकादशी का पौराणिक महत्व
सतयुग में मान्धाता राजा के राज्य में लगातार तीन वर्ष बारिश नहीं पड़ने से अकाल पड़ गया था। प्रजा की दयनीय स्थिति को देख राजा समाधान खोजने जंगल गए। इस दौरान अंगिरा ऋषि ने कहा कि, आप राज्य में जाकर देवशयनी एकादशी का व्रत रखो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में वर्षा होगी। राजा ने विधि विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत किया, इसके प्रभाव से अच्छी वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। 

 

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