कहते हैं कि मौतों के बावजूद जिंदगी रुकती नहीं है। भावुक करने वाली यह कहानी भी यही बताती है। आमतौर पर अगर घर में किसी की मौत हो जाए, तो सारे शुभ कार्य रोक दिए जाते हैं। लेकिन अगर मरने वाले की अंतिम इच्छा ही यही हो कि उसकी शुभ कार्य नहीं रुकने चाहिए..तब ऐसा होता है। यह मामला चासनाला का है। पिता की घर में अर्थी सजी रखी थी। बेटा पहले 7 फेरे करके बहू ब्याहकर लाया। इसके बाद पिता को मुखाग्नि दी।
धनबाद, झारखंड. जिंदगी चलने का नाम! यह बिलकुल सत्य है। किसी के जाने से ये दुनिया नहीं रुकती। लोग गमों को भूलकर आगे बढ़ते रहते हैं। भावुक करने वाली यह कहानी भी यही बताती है। आमतौर पर अगर घर में किसी की मौत हो जाए, तो सारे शुभ कार्य रोक दिए जाते हैं। लेकिन अगर मरने वाले की अंतिम इच्छा ही यही हो कि उसकी शुभ कार्य नहीं रुकने चाहिए..तब ऐसा होता है। यह मामला चासनाला का है। पिता की घर में अर्थी सजी रखी थी। बेटा पहले 7 फेरे करके बहू ब्याहकर लाया। इसके बाद पिता को मुखाग्नि दी।
लॉकडाउन के कारण बेटे की शादी नहीं देख सका पिता
यह मामला धनबाद जिले के चासनाला का है। यहां के मोड़ मोहल्ले में रहने वाले नागेश्वर पासवान का गुरुवार को निधन हो गया था। उनकी अर्थी तक तब घर में सजी रखी रही, जब तक कि छोटा बेटा बहू ब्याहकर घर नहीं ले आया। बहू ने ससुराल में कदम रखते ही सबसे पहले अर्थी पर लेटे ससुर के पैर छुए और मुख में गंगाजल डाला। इसके बाद बेटा पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ। दरसअसल, 72 वर्षीय नागेश्वर सेल से रिटायर हुए थे। वे लंबे समय से बीमार थे। उनका इच्छा थी कि उसके जीवित रहते छोटे बेटे विजय की शादी हो जाए। विजय की शादी हजारीबाग की रहने वाली लड़की से 4 मई को होना तय हुई थी। लेकिन लॉकडाउन के कारण शादी नहीं हो सकी।
अगली तारीख 14 जून तय की गई थी। इससे हफ्तेभर पहले नागेश्वर बाथरूम में गिर पड़े। उनकी स्थिति नाजुक हो गई। उनकी अंतिम इच्छा थी कि वे रहें..न रहें..लेकिन बेटे की शादी नहीं रुकनी चाहिए। इसी को देखते हुए बेटे ने अपनी शादी नहीं टाली। हालांकि शादी गायत्री मंदिर में कराई गई। लड़की वाले हजारीबाग से चासनाला पहुंच गए थे। बाद में मोहलबनी दामोदर नदी के मुक्ति धाम घाट में नागेश्वर का अंतिम संस्कार किया गया।