झारखंड के जमशेदपुर में पिछलें 21 साल से चल रहा है ऐसा गुरुकुल जहां ब्राह्मण नहीं बल्कि आदिवासी बच्चे सीख रहे वेद, पढ़ रहे है संस्कृत। यहां पढ़ने वाले बच्चे शादी विवाह कराने के साथ ही मंदिरों में पुजारी के रूप में भी नियुक्त हो रहे हैं।
झारखंड. पांच सितंबर यानि आज झारखंड सहित पूरे देशभर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। आज का दिन गुरुओं को समर्पित होता है। बता दें कि इस दिन हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। वे एक महान शिक्षक थे। उनके विचार के कारण ही उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन काल से ही गुरूओं का बच्चों के जीवन में बड़ा योगदान रहा है। गुरुओं से मिला ज्ञान और मार्गदर्शन से ही हम सफलता के शिखर तक पहुंच सकते हैं। झारखंड के जमशेदपुर में एक ऐसा ही गुरुकुल है जो आदिवासी बच्चों में वेद और उपनिषद का ज्ञान भर रहा है। इस गुरुकुल का नाम है सप्तर्षी। गुरुकुल को रत्नाकर शास्त्री और उनकी पत्नी शेफाली मलिक चलाती है। दोनों ने संस्कृत से पढ़ाई की है और उन्हें वेदों की जानकारी है। इनके द्वारा चलाया जा रहा गुरुकुल की विशेषता यह है कि यहां ब्राह्मण के बच्चे नहं बल्कि आदिवासी बच्चे वेद और उपनिषद की पढ़ाई कर रहे हैं।
पूरी तरह संस्कृत में दी जाती है शिक्षा
गुरुकुल में सभी बच्चों को पूरी तरह संस्कृत में ही शिक्षा दी जाती है। दिन शुरुआत यज्ञ अनुष्ठान के साथ होती है। यहां पढ़ने वाले 5 से 15 वर्ष की उम्र के आदिवासी बच्चों को श्रीमद्भागवत गीता के कई अध्याय कंठष्थ हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि इन बच्चों के परिवार का कोई भी सदस्य कभी संस्कृति नहीं पढ़ा लेकिन बच्चे पूरी तरह से सनातन परंपाराओं का पालन करते नजर आते हैं। यहां रहने वाले बच्चों का उपनयन संस्कार कराया जाता है। वे चोटी रखने की परंपरा का भी पालन करते हैं। बच्चों को कर्मकांड कराने की शिक्षा दी जाती है। यही वजह है कि यहां से निकलने वाले कई बच्चे शादी विवाह से लेकर धार्मिक अनुष्ठान करा रहे हैं वहीं कई मंदिरों में पूजारी नियुक्त हैं।
गुरुकुल में 90 प्रतिषत बच्चे आदिवासी
पुराने समय से लेकर आज तक यह मान्यता बनी हुई है कि वेद और पुराणों की शिक्षा हो या संस्कृत की पढ़ाई आम तौर पर यह ब्राह्मणों के बच्चे ही करते आ रहे हैं, लेकिल सप्तर्षी गुरुकुल इन धारनाओं को तोड़ते हुए नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले गरीब आदिवासी बच्चों को संस्कृत में वेद और उपनिषद का ज्ञान दे रहा है। यह काबिले तारीफ है। बता दें कि गुरुकुल में फिलहाल करीब 100 बच्चे हैं। इनमें 90 बच्चे आदिवासी समुदाए के हैं। ये गुरुकुल में ही रहकर पढ़ाई करते हैं। करीब 200 से अधीक बच्चे मध्यमा कर चुके हैं।
बाहर से आकर बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देते हैं शिक्षक
सप्तर्षी गुरुकुल में पढ़ने वालों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। इन्हें पढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक आते हैं और फ्री में वेद और उपनिषद का ज्ञान देते हैं। यहां रहने वाले बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था गुरुकुल के रत्नाकर शास्त्री और उनकी पत्नी तैयार करती है। गुरुकुल की शुरूआत 2001 में आर्य समाज के आचार्य पंडित प्रकाशानंद ने की थी। रत्नाकार शास्त्री उनके शिष्य है जो गुरुकुल को आगे बढ़ा रहे हैं।
ज्ञान अर्जित कर उसे बांटना ही सनातन धर्म है : रत्नाकर शास्त्री
सप्तर्षी गुरुकुल के गुरु रत्नाकर शास्त्री का कहना है कि हमारा सनातन धर्म हमें यही शिक्षा देता है कि हम ज्ञान अर्जित करें और फिर उसे दूसरों में बांटे। आदिवासी सनातन पंरपरा के पोषक हैं। हालांकि कुछ लोग इस पर सवाल उठाते हैं, लेकिन वह उनकी अज्ञानता है। रत्नाकर शास्त्री ओडिशा के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि भले ही जन्म से ये बच्चे आदिवासी हैं, लेकिन इनका कर्म ब्राहणों वाला है।