दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं, जिनका इतिहास रहस्यों से भरा हुआ है। लेकिन आज तक उसकी तह तक कोई नहीं पहुंच पाया है। ऐसी ही एक जगह टांगीनाथ धाम है।
गुमला, झारखंड. दुनिया में कई ऐसी जगहें हैं, जिनका इतिहास रहस्यों से भरा हुआ है। लेकिन आज तक उसकी तह तक कोई नहीं पहुंच पाया है। ऐसी ही एक जगह टांगीनाथ धाम है। यह प्राचीन धार्मिक स्थल राजधानी रांची से करीब 150 किमी दूर, जबकि गुमला जिला मुख्यालय से करीब 75 किमी दूर है। यहां जमीन में गड़े इस त्रिशूल को लेकर कई किवंदती हैं। एक किवंदती के अनुसार, इसे भगवान शिव का त्रिशूल माना जाता है। घने जंगलों के बीच स्थित टांगीनाथ पर सावन और महाशिवरात्रि पर खासी भीड़ पहुंचती है। लोग मानते हैं कि यहां भगवान शिव साक्षात विराजे हैं। इस मंदिर के पुजारी आदिवासी हैं।
आज तक कोई नहीं खोज पाया त्रिशूल का रहस्य..
यह त्रिशूल हवा-पानी और धूप में रहने के बावजूद आज तक खराब नहीं हुआ। इसे जंग भी नहीं लगी। किवदंती है कि त्रेता युग में सीता स्वयंवर के दौरान जब राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा, तो भगवान परशुराम नाराज हो गए थे। इसके बाद उनकी लक्ष्मण से बहस हुई। बाद में जब मालूम चला कि राम ही विष्णु का अवतार हैं, तब परशुराम को पश्चाताप हुआ। वे वहां निकलकर यहां यानी टांगीनाथ आ पहुंचे। यहां तपस्या करते हुए उन्होंने अपना फरसा(परशु) जमीन में गाड़ दिया। यह त्रिशूल वही माना जाता है।
एक अन्य किवदंती के अनुसार एक बार भगवान शिवजी शनिदेव से नाराज हो गए। उन्होंने त्रिशूल निकालकर शनिदेव पर प्रहार किया। शनिदेव बच गए और यह त्रिशूल जमीन में जा गड़ा। यह वही त्रिशूल माना जाता है। बताते हैं कि एक बार पुरातत्व विभाग ने त्रिशूल के आसपास करीब 10 फीट खुदाई की, ताकि उसकी जड़ पता चले, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।
यहां 1989 में पुरातत्व विभाग ने खुदाई की थी। तब सोने-चांदी के बेशकीमती आभूषण और मूर्तियां मिली थीं। यहां मिलीं पाषाण मूर्तियां उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर और गौरी केदार में मिली मूर्तियों से मेल खाती हैं। आज भले यह जगह खंडहर हो चुकी है, लेकिन यहां गड़ा त्रिशूल जैसे का तैसा है।