गरीबी में बीत रहा है पद्मश्री का दिन, दूसरों के घर में बेटी को करना पड़ता है झाड़ू पोछे का काम

वर्ष 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों झारखंड के जलपुरुष सिमोन उरांव को पद्मश्री दिया गया था। लेकिन आज उनका परिवार एक-एक पैसे का मोहताज बना है। 

रांची। पद्मश्री भारत में चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। अपने क्षेत्र में विलक्षण काम करने वाले लोगों को यह सम्मान राष्ट्रपति के हाथों दिया जाता है। इस सम्मान का पाना बड़ी उपलब्धि की बात मानी जाती है। जब वर्ष 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों पद्मश्री सम्मान झारखंड के सिमोन उरांव को दिया गया तो बेड़ों में जश्न का माहौल था। बेड़ों झारखंड की राजधानी रांची से 30 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा का कस्बा है। जहां सिमोन उरांव अपने परिवार के साथ छोटे से घर में रहते हैं। झारखंड के जल पुरुष के रूप में मशहूर 87 वर्षीय सिमोन को उनके काम के लिए राष्ट्रीय-अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिले। लेकिन आज उनका परिवार एक-एक पैसे का मोहताज हो गया है। आलम यहां तक आ गया है कि सिमोन के घर की लड़कियों को दूसरों के घर में झाडू़-पोछा करना पड़ता है।
 
झारखंड के जल पुरुष कहे जाते हैं सिमोन उरांव
खनिज संपदा के साथ-साथ झारखंड का ज्यादातर हिस्सा जंगल और पहाड़ का है। ऐसे में यहां पेयजल की समस्या लंबे समय से रही है। अभी चल रहे विधानसभा चुनाव में भी कई जगह पर पेयजल ही सबसे बड़ा मुद्दा है। इस जमीनी दिक्कत को दूर करने के लिए सिमोन ने जो काम किया वो अपने-आप में एक मिसाल है। सिमोने ने सबसे पहले अपनी जमीन अपने मेहनत से कुआं खोदा। इसके बाद आस-पास के लोगों को भी कुआं खोदने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1955 से 1970 तक  उन्होंने बांध बनाने का जोरदार अभियान चलाया। उनके अभियान से जुड़कर 500 लोगों ने जल संरक्षण का काम किया। 

सड़क हादसे में बेटे की मौत के बाद शुरू हुई दिक्कतें  
अपने काम और जीवनशैली से सिमोन ने समाज को यह संदेश दिया कि किस तरह पर्यावरण को बचाया जा सकता है। उनके प्रयासों से उनके गांव बेड़ों में जल संकट की समस्या जाती रही। आस-पास के कई गांव भी सिमोन ही प्रभावित होकर जल संरक्षण का काम किया। बिहार के दशरथ मांझी के तरह सिमोन ने बिना प्रचार-प्रसार के जल के लिए अपना जीवन दे दिया। स्वभाविक है यदि कोई व्यक्ति सामाजिक कार्यों के लिए अपना जीवन दे दें तो उसके पास आर्थिक तंगी रहती है। हालांकि बाद में जब सिमोन के लड़के कमाने लगे तो परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ लेकिन आज से आठ साल पहले उनके बड़े बेटे की सड़क हादसे में मौत हो गई,  जिसके बाद से उनका आर्थिक तंगी से जुझने लगा। 

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87 वर्ष की उम्र में भी सिमोन को नहीं मिल रहा वृद्धा पेंशन
आज उनकी पोती मोनिका मिंज शहर में दूसरे के घरों में झाड़ू-पोछा करती है। अन्य पोतियां संगे-संबंधियों के यहां रह रही है। 87 वर्षीय सिमोन को अबतक वृद्धा पेंशन नहीं मिल रहा है। न ही उनकी पत्नी बिजनिया को। ऐसे में सिमोन के परिवार का गुजारा काफी संकट से हो रहा है। जब 2016 उन्हें सम्मान दिए जाने की बात हुई थी तब कई नेता, मंत्री उनके घर पहुंचे थे। लेकिन सम्मान मिलने के बाद सभी भूल गए। वृद्धा पेंशन के बारे में सिमोन का कहना है कि सरकार ने मेरे काम को देखते हुए सम्मान दिया तो उसे मेरी हालत को देखते हुए पेंशन भी दिया जाना चाहिए। 

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