
रांची. झारखंड में सियासी हलचल के बीच सीएम हेमंत सोरेन की विधायकी से पहले झारखंड के पहले मुख्यमंत्री व वर्तमान में भाजपा के बड़े नेता बाबूलाल मरांडी की सदस्यता रद्द हो सकती है। ऐसा माना जा रहा है आज होने वाली सुनवाई में उनके खिलाफ चल रहे दल-बदल मामले पर फैसला आ सकता है। उनके खिलाफ स्पीकर न्यायाधिकरण में चल रहे दलबदल मामले में स्पीकर रबिन्द्र नाथ महतो अहम सुनवाई करने वाले हैं। स्पीकर पहले ही इस मामले में मरांडी के खिलाफ 10 बिन्दुओं पर चार्जफ्रेम कर चुके हैं। स्पीकर न्यायाधिकरण में आज की सुनवाई राज्य की मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है। दोष सिद्ध होने पर मरांडी की सदस्यता को भी खतरा है।
2019 में बाबूलाल ने बीजेपी ज्वाइन की थी
दरअसल, बाबूलाल मरांडी पर झाविमो (झारखंड विकास मोर्चा) के सिंबल पर विधानसभा चुनाव 2019 में निर्वाचित होने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। मरांडी ने कहा कि उन्होंने झाविमो का विलय भाजपा में नियमानुसार किया है। तीन विधायकों में से दो को निष्कासित करने के बाद पार्टी में बचे एक मात्र विधायक ने पार्टी का विलय करने का निर्णय किया। यह दल-बदल का मामला नहीं बनता है। झाविमो में भाजपा के विलय को निर्वाचन आयोग की मंजूरी भी मिल चुकी है। जबकि शिकायतकर्ता विधायक दीपिका पांडेय सिंह और प्रदीप यादव की तरफ से कहा गया कि झाविमो का भाजपा में दो तिहाई बहुमत से विलय नहीं हुआ है। यह दल-बदल का मामला बनता है। इस पर लंबी बहस के बाद विधानसभा अध्यक्ष आज फैसला सुना सकते हैं।
यह है मामला
बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई थी। इसी पार्टी के बैनर तले 2019 के विधानसभा चुनाव में वह मैदान में उतरे थे। उनके साथ बंधु तिर्की और प्रदीप यादव भी चुनाव मैदान में थे और तीनों ने जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय कर लिया। भाजपा ने भी उन्हें सम्मान देते हुए विधायक दल का नेता चुन लिया। बावजूद इसके झारखंड विधानसभा में मरांडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल पाया। स्थिति यहां तक आ गई कि तब से अब तक झारखंड विधानसभा में आयोजित तमाम सत्र बिना नेता प्रतिपक्ष के ही संपन्न हो गए।
इस संबंध में सत्ता पक्ष का तर्क है कि बाबूलाल मरांडी ने जन आकांक्षाओं का अपमान किया है। उन्हें जनता ने भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट नहीं दिया था, बल्कि वह झारखंड विकास मोर्चा के नाम पर वोट लेकर विधान सभा पहुंचे थे। आज भी अगर भारतीय जनता पार्टी अपने विधायक दल का नेता अपने पार्टी के दूसरे नेता को बनाती है तो उन्हें नेता प्रतिपक्ष के का दर्जा मिल सकता है।
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