झारखंड की राजधानी रांची से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर है राज्य का एकलौता मदन मोहन मंदिर। इस मंदिर को वर्ष 1665 में बनाया गया था। 366 साल पुराने इस मंदिर में होती है वृंदावन के जैसे ही कृष्ण को सजाकर की जाती है पूजा।
रांची (झारखंड): झारखंड में एक 366 साल पुराना श्री कृष्ण मंदिर है। यह मंदिर राजधानी रांची से 8 किमी दूर बोड़ेया में है। यह मंदिर झारखंड का इकलौता प्रसिद्ध मदन मोहन मंदिर है। यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा वृंदावन की तर्ज पर होती है। जन्माष्टमी के दिन पूरे गांव के लोग मिलकर मंदिर को भव्य तरीके से सजाते हैं और कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। गांव का कोई ऐसा घर नहीं जो पूजा में सहभागी नहीं बनता। इस मदन मोहन मंदिर का निर्माण 1665 में लक्ष्मी नारायण तिवारी ने कराया था। यह झारखंड का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां श्रीकृष्ण के मदन मोहन रूप की पूजा अर्चना की जाती है।
मंदिर ने श्री कृष्ण और मां राधा की मूर्ति है विराजमान
मंदिर के आचार्य श्री बालमुकुंद जी ने बताया कि मंदिर में श्रीकृष्ण और मां राधा की मूर्ति विराजमान हैं। गांव वालों की यह मान्यता है कि मदन मोहन की सच्चे मन से अगर प्रार्थना की जाए तो प्राथना कभी विफल नहीं होती। यही वजह है कि गांव के किसी भी परिवार में कोई मांगलिक कार्य हो तो, सर्वप्रथम मदन मोहन जी के आशीर्वाद लेने के बाद ही की जाती है। बोड़ेया के लोगों ने बताया कि मंदिर में दूरदराज से श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के दरबार पर पूजा अर्चना करने आते हैं।
धूमधाम से मनाया जाएगा जन्माष्टमी त्योहार
मदन मोहन मंदिर में इस वर्ष भी जन्माष्टमी धूमधाम से 19 अगस्त को मनाया जाएगा। इस अवसर पर मंदिर को फूलों एवं लाइट द्वारा आकर्षक रूप से सजाया जा रहा है। 19 अगस्त को प्रात से ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा होगी और पांच बार पौराणिक तरीके से आरती की जाएगी। भगवान को भोग लगाए जाएगा और संध्या 6 बजे से 8 बजे तक छोटे बालक एवं बालिकाओं द्वारा नृत्य का रंगारंग कार्यक्रम किया जाएगा। जिसके बाद भजन मंडली द्वारा मंदिर परिसर में भजन गीत रात 11:30 बजे तक गाऐ जाएंगे एवं रात्रि 12 बजे भगवान श्री कृष्ण की विशेष आरती होगी। इसके साथ ही विशेष भोग भी चढ़ाए जाएंगे।
मंदिर की विशेषताएं
रांची के मदन मोहन मंदिर का वास्तुशिल्प सबको चकित करता है। 366 साल पुराना राधा-कृष्ण का भव्य मदन मोहन मंदिर इतने वर्षों बाद भी इसकी खूबसूरती बरकरार है। स्थापत्य कला का यह एक शानदार नमूना है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर यहां खास आयोजन होता है। हर पूर्णिमा में सत्यनारायण पूजा होती है। पहले यहां राधा-कृष्ण की मूर्ति अष्टधातु की थी, जिसमें से कृष्ण जी की मूर्ति चोरी हो गई थी। बताया जाता है कि ये मूर्तियां 45-45 सेर की थी। चोरी होने के पांच वर्षों के बाद रांची के एक स्वर्णकार द्वारा पीतल की कृष्ण जी की मूर्ति बनवाई गई और स्थापित की गई। दुसरी बार चोर राधारानी की मूर्ति ले गए। वर्ष 1975 के आसपास पोटपोटा नदी में बालू खुदाई के दौरान राधारानी की मूर्ति खंडित अवस्था में मिली। जिसके बाद सनं 1980 में इस मंदिर में पीतल की मूर्तियां स्थापित की गईं। मदन मोहन मंदिर की नींव (1665 ईस्वी) में वैशाख शुक्ल पक्ष दशमी को रखी गई थी। इसकी नींव राजा रघुनाथ शाही की उपस्थिति में लक्ष्मी नारायण तिवारी द्वारा रखी गई। वहीं सन 1668 के श्रावण शुक्ल दशमी को यानी तीन साल तीन माह के बाद चहारदीवारी और दरवाजे की नींव रखी गई। इस मंदिर को पूरा तरह से बनने में 17 साल लग गए। मंदिर परिसर में स्थित शिलालेख के अनुसार उस समय निर्माण में चौदह हजार एक रुपए की लागत आई।
आदित्य सिंह की रिपोर्ट.........