झारखंड हाईकोर्ट में लगी एक याचिका में गुरुवार 18 अगस्त के दिन सुनवाई करते हुए जज जस्टिस एसएन पाठक ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने बेटे की जगह बेटी को नौकरी देने की बात कही।
रांची (झारखंड). झारखंड हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान बड़ा आदेश दिया। उन्होंने अपने आदेश में कहा- अनुकंपा पर नियुक्ति के लिए लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। झारखंड हाईकोर्ट ने न्यायधीश जस्टिस एसएन पाठक ने आदेश देते हुए कहा कि यदि एकमात्र कमाने वाले की अचानक मृत्यु की स्थिति में अपना निर्वहन करने के लिए विवाहिता की बेटी को अनुकंपा पर नौकरी दी जाये। केस की सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला एक उदाहरण है, जहां अनुकंपा पर नियुक्ति के लिए आवेदक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया था।
बेटे के जगह बेटी को मिलनी चाहिए नौकरी
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत में बहस करते हुए कोर्ट को यह बताया कि अनुकंपा पर नौकरी के दावे को खारिज करने वाला अक्षेपित आदेश लैंगिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, क्योंकि यदि मृतक कर्मचारी का बेटा अनुकंपा के आधार पर रोजगार लिए के लिए अधिकृत है, तो इस बात का कोई ठोस कारण नहीं है कि बेटी, विवाहित है या अविवाहित, उसे अनुकंपा पर नौकरी न दी जाये। बेटी की शादी हो जाने के कारण याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया गया था।
लड़की के वकील ने बताई यह बात
प्रार्थी रीता गिरी के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता का दावा आवेदन जमा करने के बाद से चार साल से अधिक समय के बाद खारिज कर दिया गया था। वह भी केवल उसकी विवाहित बेटी होने के आधार पर। अनुकंपा पर नियुक्ति के लिए अपना आवेदन जमा करने के समय प्रार्थी अविवाहित थी और उस दौरान वह पूरी तरह से अपनी मां की आय पर निर्भर थी। झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड की ओर से अदालत में उपस्थित अधिवक्ता ने अपनी बहस में कहा कि विवाहित बेटियां मृतक कर्मचारी के आश्रित की श्रेणी में नहीं आती हैं, और इसलिए याचिकाकर्ता का दावा गलत है।
हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया
दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड को यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता रीता गिरी को मृत मां के स्थान पर नियुक्त करने पर विचार किया जाये। ताकि एकमात्र कमाने वाले की अचानक मृत्यु की स्थिति में अपना निर्वहन कर सकें।