अफगानिस्तान के बाघलान प्रांत से अगवा किए गए तीन मजदूरों की रिहाई हो गई है। तालिबान ने उन्हें छोड़ दिया। आतंकवादियों की कैद से निकले मजदूरों ने बताई मौत के साये में गुजारे दिनों की कहानी।
गिरिडीह. तालिबानी आंतकियों की कैद में करीब डेढ़ साल रहने के बाद तीन मजदूरों की रिहाई हो गई। इनमें से एक मजदूर गिरिडीह का रहने वाला है। परिजनों ने उसके लौटने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। मंगलवार देर रात यह मजदूर काली महतो अपने घर लौट आया। उसके आने की खुशी परिजनों के चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती थी। महतो की पत्नी और बेटा चिंतामन उससे मिलकर भावविभोर हो गए। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौता हुआ था। इसके बाद 6 अक्टूबर को काली महतो और दो अन्य मजदूरों को कैद से मुक्ति मिल गई थी। काली महतो को दिल्ली लाया गया। गौरतलब है कि 6 मई 2018 को अफगानिस्तान के बाघलान प्रांत में भारतीय कंपनी केईसी इंटरनेशनल के लिए काम कर रहे दो इंजीनियरों और 7 भारतीय मजदूरों के अलावा एक अफगानी ड्राइवर को तालिबानी ने अगवा कर लिया था। तालिबान के कब्जे में अब सिर्फ 4 मजदूर बचे हैं।
कोई टॉर्चर नहीं किया..
काली महतो ने बताया कि उसके साथ 7 अन्य मजदूर भी तालिबानी की कैद में थे। हालांकि किसी को भी आतंकियों ने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। उनके लीडर ने सबको हिदायत दे रखी थी कि किसी के भी धर्म पर हमला न किया जाए। उन्हें अपने-अपने धर्म के अनुसार रहने की इजाजत थी। तालिबान ने उनके खान-पान से लेकर रहने आदि का अच्छा इंतजाम किया था। लेकिन दाढ़ी और बाल कटवाने की सख्त मनाही थी। आतंकवादी कहते थे कि वे अफगानिस्तान और अमेरिका से लड़ाई लड़ रहे हैं। हिंदुस्तान से उनकी कोई दुश्मनी नहीं है। उल्लेखनीय है कि बगोदर के चार और मजदूर अभी तालिबान के कब्जे में हैं। उम्मीद है कि वे भी जल्द रिहा कर दिए जाएंगे।