2 अप्रैल से आरंभ होगी चैत्र नवरात्रि, बनेगा शनि-मंगल का शुभ योग, ग्रहों की स्थिति दिलाएगी शुभ फल

हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व 4 बार मनाया जाता है। इनमें से दो गुप्त नवरात्रि होती है और दो प्रकट। साल की पहली नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है। इस बार चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) का आरंभ 2 अप्रैल, शनिवार से होगा।

Asianet News Hindi | Published : Mar 8, 2022 12:20 PM IST

उज्जैन. चैत्र नवरात्रि का महत्व सबसे ज्यादा इसलिए है कि ब्रह्माजी ने इस दिन से सृष्टि निर्माण की शुरुआत की थी। इसी दिन से नया साल संवत् 2079 (Hindu New Year 2079) की शुरुआत होगी। भक्त नए साल की शुरुआत देवी की आराधना से करेंगे। ज्योतिषियों का कहना है कि यह नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) खास ग्रह योग-संयोग के कारण मनोकामना पूर्ति करेगी तथा साधकों को सिद्धि देगी। इस बार चैत्र नवरात्रि पूरे 9 दिन की रहेगी यानी तिथि का क्षय या वृद्धि नहीं होगी।

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बनेंगे ये शुभ योग और ऐसी रहेगी ग्रहों की स्थिति
चैत्र नवरात्रि में मकर राशि में शनि देव, मंगल के साथ रहेंगे, जो पराक्रम में वृद्धि करेंगे। रवि पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग नवरात्रि को स्वयं सिद्ध बनाएंगे। शनिवार से नवरात्रि का प्रारंभ शनिदेव का स्वयं की राशि मकर में मंगल के साथ रहना निश्चित ही सिद्धि कारक है। इससे कार्य में सफलता, मनोकामना की पूर्ति, साधना में सिद्धि मिलेगी। चैत्र नवरात्रि के दौरान कुंभ राशि में गुरु, शुक्र के साथ रहेगा। मीन में सूर्य, बुध के साथ, मेष में चंद्रमा, वृषभ में राहु, वृश्चिक में केतु विराजमान रहेंगे।

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देवी के प्राकट्य और सृष्टि निर्माण की शुरुआत
ब्रह्म पुराण के अनुसार नवरात्रि का धार्मिक महत्व इसलिए भी है कि नवरात्रि के पहले दिन आद्यशक्ति प्रकट हुई थी। देवी के कहने पर चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ही ब्रह्माजी ने सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। इसीलिए चैत्र नवरात्रि को सृष्टि के निर्माण का उत्सव भी कहा जाता है। इसी तिथि से हिंदू नव वर्ष शुरू होता है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार भी लिया था। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार भगवान राम का है, वह भी चैत्र नवरात्रि में हुआ था। इसीलिए चैत्र नवरात्रि का ज्यादा बड़ा महत्व है।

9 दिनों में करें देवी के इन 9 रूपों की पूजा
एकम - शैलपुत्री 
द्वितीया- ब्रह्मचारिणी 
तृतीया- चंद्रघंटा 
चतुर्थी- कुष्मांडा 
पंचमी- स्कंद माता 
षष्ठी- कात्यायनी 
सप्तमी-कालरात्रि 
अष्टमी- महागौरी 
नवमी-सिद्धिदात्री।

 

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