Maghi Purnima 2022: रात 11.22 तक रहेगी पूर्णिमा तिथि, घर बैठे पाना चाहते हैं गंगा स्नान का फल तो ये काम करें

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने की अंतिम तिथि पूर्णिमा (Maghi Purnima 2022) होती है। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। कई विशेष व्रत-त्योहार भी इसी तिथि पर मनाए जाते हैं, इसलिए इस तिथि का विशेष महत्व ज्योतिष शास्त्रों में भी बताया गया है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 16, 2022 3:36 AM IST

उज्जैन. आज (16 फरवरी, बुधवार) माघ मास की पूर्णिमा है। इसे माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima 2022) कहते हैं। धर्म ग्रंथों में इस तिथि को स्नान-दान का महापर्व कहा गया है। साथ ही पूरे साल के पूर्णिमा स्नान में माघ पूर्णिमा स्नान को सबसे उत्तम भी कहा गया है। इस तिथि पर गंगा स्नान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। साथ ही इस दिन तिल दान करने से कई यज्ञ करने जितना पुण्य फल भी मिलता है।
 

ऐसे पाएं गंगा स्नान का फल 
पुरी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के अनुसार पूर्णिमा तिथि 15 फरवरी को रात करीब 9.45 से शुरू हो चुकी है, जो बुधवार रात 11.22 तक रहेगी। इस मुहूर्त में गंगा स्नान कर के पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। जो गंगा तीर्थ नहीं जा सकते वो घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर नहा सकते हैं। इस पर्व पर स्नान के बाद ऊं घृणि सूर्याय नम: मंत्र बोलते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान और गोदान, तिल, गुड़ व कंबल का विशेष महत्व है।

मघा नक्षत्र से बना माघ मास
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार सत्ताइस नक्षत्रों में मघा नक्षत्र के नाम से माघ पूर्णिमा हुई थी। इस तिथि का धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिये से भी बहुत महत्व है। पूरे महीने अगर तीर्थ स्नान न कर सकें तो माघ पूर्णिमा पर गंगा या पवित्र नदियों में स्नान जरूर करना चाहिए। इससे पूरे माघ महीने में तीर्थ स्नान करने का पुण्य फल मिल जाता है। साथ ही भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कृपा भी बनी रहती है।

ये है स्नान-दान का महापर्व
मकर संक्रांति की तरह इस दिन भी तिल दान का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य डॉ. मिश्र के अनुसार, माघ पूर्णिमा गंगा-यमुना के किनारे संगम पर चल रहे कल्पवास का आखिरी दिन होता है। इस दिन पूरे महीने की तपस्या के बाद शाही स्नान के साथ कल्पवास खत्म हो जाता है। इसलिए धार्मिक नजरिये से माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। स्नान-दान की सभी तिथियों में इसे महापर्व कहा जाता है।

 

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