कुंडली में वक्री शुक्र देता है अशुभ फल, जानिए किस भाव में हो तो क्या असर डालता है जीवन पर?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्र ग्रह भोग विलास, सांसारिक सुख, भौतिक सुख, प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण, दांपत्य सुख आदि का प्रतिनिधि ग्रह है।

Asianet News Hindi | Published : Mar 27, 2021 3:33 AM IST

उज्जैन. शुक्र जब किसी की कुंडली में शुभ अवस्था में मजबूत होता है तो वह ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत करता है। जिन लोगों की कुंडली में शुक्र वक्री स्थिति में होता है उन्हें कष्ट ही देता है। ऐसा व्यक्ति सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेता है। आगे जानिए कुंडली के किस भाव में होने पर वक्री शुक्र क्या फल देता है…

प्रथम भाव में
वक्री शुक्र कुंडली के प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति शारीरिक रूप से सुंदर होता है, लेकिन उसमें घमंड की अधिकता होती है। इस भाव में वक्री शुक्र वाले विपरीतलिंगी को सहज ही अपने वश में कर लेते हैं और उसी कारण बदनाम भी होते हैं।

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द्वितीय भाव में
द्वितीय भाव में वक्री शुक्र वाला व्यक्ति कामुक और विलासी होता है। दिखावे में इनकी ज्यादा रूचि होती है और ये दिखावे पर खर्च भी खूब करते हैं। ये लोग दिखावा छोड़ आध्यात्मिकता पर ध्यान दें तो इनका जीवन सुंदर बन सकता है।

तृतीय भाव में
तृतीय भाव में अकेला वक्री शुक्र अशुभ फल देता है। ऐसा व्यक्ति रंगीली प्रवृत्ति का होता है और इसी कारण इन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। शत्रु पक्ष से हमेशा परेशान रहता है और अपनी ही संपत्ति को नष्ट करता है। 

चतुर्थ भाव में
चतुर्थ भाव में वक्री शुक्र भूमिपति होने का संकेत देता है, लेकिन व्यक्ति को अपनी ही भूमि, भवन से दूर भी कर देता है। उसकी बुद्धि उसके व्यक्तिगत विकास में बाधक होती है। आयु के अंतिम भाग में इन्हें अत्यधिक खर्च करना पड़ता है।

पंचम भाव में
वक्री शुक्र पंचम भाव में होने पर कन्या संतानें अधिक होती हैं। पुत्र होने पर भी पुत्र की ओर से इन्हें कोई सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसा व्यक्ति जुआरी, लॉटरी और ऐसे ही खेलों में अधिक रूचि रखता है।

षष्ठम भाव में
वक्री शुक्र छठे भाव में हो तो व्यक्ति स्त्रियों के प्रति द्वेष रखता है। इनके जीवन में शत्रु बहुत होते हैं। परिवार के वरिष्ठों द्वारा अर्जित धन को यह नष्ट कर देता हे। ऐसे व्यक्ति का स्वयं का स्वास्थ्य तो अच्छा होता है लेकिन दूसरों को पीड़ा पहुंचाते रहते हैं।

सप्तम भाव में
सप्तम भाव में वक्री शुक्र वाले लोग अपने शत्रु स्वयं होते हैं। विवाह, साझेदारी, व्यापार के प्रति अपनी खराब नीतियों के कारण खुद ही अपना नुकसान कर बैठते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवनसाथी व भागीदार के प्रति पूर्ण निष्ठा और विश्वास नहीं रखते।

अष्टम भाव में
जिन लोगों के अष्टम भाव में वक्री शुक्र हो उन्हें अपने पिता का लिया हुआ कर्ज चुकाना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति एक बार कर्ज के जाल में फंस जाए तो कर्ज बढ़ता ही जाता है। इनके जीवन में प्रत्येक कार्य का अंत दुखदायी होता है।

नवम भाव में
वक्री शुक्र नवम भाव में हो तो व्यक्ति सूदखोर होता है। ये अपने अहम और दिखावे के लिए खूब बढ़चढ़कर धार्मिक कार्य, यज्ञ, दान आदि में हिस्सा लेते हैं जबकि मन में कोई सकारात्मक भावना नहीं होती है।

दशम भाव में
दशम भाव का वक्री शुक्र व्यक्ति को धनवान और वैभवशाली बनाता है। इनका विवाह उच्चकुल में होता है। हालांकि ऐसा व्यक्ति अपने मातृपक्ष से प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं रखता और किसी भी प्रकार से उनकी मदद नहीं करता है।

एकादश भाव में
एकादश भाव में वक्री शुक्र वाले व्यक्ति को इस जन्म में उन्हीं मित्र, शुभचिंतक और जीवनसाथी की प्राप्ति होती है जो कि पिछले जन्म में भी उनके साथ थे। वक्री शुक्र वाले व्यक्ति को धन-संपत्ति, वाहन सुख और नौकर-चाकरों का सुख प्राप्त होता है।

द्वादश भाव में
जन्मकुंडली के 12वें भाव में शुक्र वक्री होने पर व्यक्ति खर्चीला होता है। यह धन इकट्ठा करने में असफल रहता है। शरीर में पित्त कफ की मात्रा अधिक होती है और व्यसनी और भोगी किस्म का होता है। ऐसा पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर पराई स्त्री के साथ रहता है।

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