जन्म कुंडली में इन 5 स्थानों पर मंगल होने से ही क्यों बनता है मांगलिक दोष?

हिंदू परिवारों में विवाह से पूर्व लड़का-लड़की की जन्मकुंडली और गुणों का मिलान किया जाता है। इनमें सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है मांगलिक दोष को। लड़का या लड़की किसी एक की कुंडली में भी मांगलिक दोष होता है तो उनका विवाह नहीं किया जाता है या अत्यंत आवश्यक ही हो तो मंगल दोष का परिहार या पूजा करके विवाह किया जाता है।

Asianet News Hindi | Published : May 17, 2021 4:05 AM IST

उज्जैन. हिंदू परिवारों में विवाह से पूर्व लड़का-लड़की की जन्मकुंडली और गुणों का मिलान किया जाता है। इनमें सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है मांगलिक दोष को। लड़का या लड़की किसी एक की कुंडली में भी मांगलिक दोष होता है तो उनका विवाह नहीं किया जाता है या अत्यंत आवश्यक ही हो तो मंगल दोष का परिहार या पूजा करके विवाह किया जाता है। आगे जानिए मंगल दोष से जुड़ी खास बातें…

इन 5 भाव में बनता है मंगल दोष
- कुंडली में मंगल दोष तब बनता है जब कुंडली के 12वें, पहले, चौथे, सातवें या आठवें स्थान में से किसी एक में मंगल बैठा हो। कभी आपने सोचा है कि इन पांचों स्थान में से किसी एक में मंगल होने पर ही मंगल दोष क्यों बनता है।
- सबसे पहली बात तो यह कि मंगल से ही दोष क्यों बनता है? इसका जवाब यह है कि मंगल को उग्रता, क्रोध, आवेश, शौर्य, शक्ति, शरीर में रक्त, सौभाग्य का कारक ग्रह कहा जाता है।
- यदि मंगल दूषित होगा तो व्यक्ति इन सभी से जुड़ी पीड़ाओं का भोग करता है। यदि लड़के या लड़की किसी एक की कुंडली में मंगल उग्र है तो वह सीधे- सीधे दूसरे को दबाने का प्रयास करेगा।
- ऐसी स्थिति में विवाह के सुखी होने में संदेह रहता है। मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व भी करता है, इसलिए यदि दोष किसी एक की कुंडली में है तो वह दूसरे लोगों के लिए घातक बन सकता है। इससे सौभाग्य में कमी आ सकती है।

पांच स्थान ही क्यों?
व्यये लग्ने च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्या भर्तुविनाशाय भर्ता कन्या विनाशक:।।

1, 4, 7, 8, 12 इन पांचों स्थानों में से किसी एक में मंगल होने पर मांगलिक दोष बनता है। जन्मकुंडली में सप्तम स्थान जीवनसाथी और विवाह सुख का स्थान होता है। उपरोक्त पांचों स्थानों का संबंध किसी न किसी तरह सप्तम होता है। इसलिए इन पांचों स्थानों को ही मंगल दोष में शामिल किया गया है। लग्न में मंगल हो तो उसी सीधी दृष्टि सप्तम पर होती है।

1. चतुर्थ में मंगल हो तो उसकी चौथी दृष्टि सप्तम पर होती है।
2. सप्तम में स्वयं मंगल है तो उस घर को तो वो प्रभावित करेगा ही।
3. अष्टम में मंगल हो तो उसकी 12वीं दृष्टि सप्तम पर होती है।
4. द्वादश में मंगल हो तो उसकी अष्टम दृष्टि मंगल पर होती है।
5. इस प्रकार सप्तम पर मंगल की 4, 8, 12वीं दृष्टि संबंध शुभ नहीं होता।


इसलिए उपरोक्त पांचों स्थानों में मंगल होने पर मंगल दोष होता है। ऐसी स्थिति में युवक-युवती दोनों की कुंडली में मंगल दोष होने पर ही विवाह हो सकता है, अन्यथा नहीं।

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