सार

नवग्रहों में शनि को वैसे तो सबसे ज्यादा क्रूर और पापग्रह माना जाता है, लेकिन शनि के कारण ही व्यक्ति को प्रबल राजयोग भी मिलता है।

उज्जैन. शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देकर रंक से राजा और राजा से रंक बनाने की शक्ति रखता है। इसीलिए लोग शनि से भयभीत रहते हैं। शनि ग्रह से सैकड़ों शुभ-अशुभ योग बनते हैं। आगे जानिए शनि से जुड़े कुछ प्रमुख शुभ-अशुभ योग और दोष के बारे में...

1. राज योग
जन्मकुंडली में वृषभ लग्न में चंद्रमा हो, दशम में शनि हो, चतुर्थ में सूर्य तथा सप्तमेश गुरु हो तो राज योग बनता है। ऐसा व्यक्ति सेनापति, पुलिस कप्तान या विभाग का प्रमुख होता है। यह पराक्रमी होता है और अपने शौर्य के दम पर दुनिया को हैरान कर देता है।

2. दीर्घायु योग
शनि का संबंध आयु से होता है। यदि शनि लग्नेश, अष्टमेश, दशमेश व केंद्र त्रिकोण या एकादश भाव में हो तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। यह अपनी पूर्ण आयु का भोग सुखपूर्वक करता है।

3. शश योग
जन्मकुंडली में शनि केंद्र स्थानों 1, 4, 7 या 10 में स्वराशि मकर-कुंभ का होकर बैठा हो तो शश योग का निर्माण होता है। यह किसी संस्थान, समूह या कस्बे का प्रमुख या राजा होता है। इसमें नैतिकता और नेतृत्व क्षमता दोनों होती है और यह सर्वगुण संपन्न् होता है।

4. पशुधन लाभ योग
यदि चतुर्थ स्थान में शनि के साथ सूर्य तथा नवम भाव में चंद्रमा हो, इसके साथ ही एकादश स्थान में मंगल हो पशुधन लाभ योग बनता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के पास अनंत गाय भैंस आदि पशु होते हैं और इसी से यदि अतुलनीय धन अर्जित करता है।

5. बहुपुत्र योग
यदि नवांश कुंडली में राहु पंचम भाव में हो और शनि के साथ हो तो बहुपुत्र योग का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाले के बहुत से पुत्र होते हैं। इसे पुत्रों का पूर्ण सुख मिलता है और उनकी किस्मत का इसे भी सुख, सम्मान, धन प्राप्त होता है।

6. दुर्भाग्य योग
यदि नवम स्थान में शनि व चंद्रमा हो, लग्नेश नीच राशि में हो तो मनुष्य भीख मांग कर गुजारा करता है। यदि पंचम भाव में तथा पंचमेश या भाग्येश अष्टम में नीच राशिगत हो तो मनुष्य भाग्यहीन होता है।

7. अंगहीन योग
यदि जन्मकुंडली के दशम स्थान में चंद्रमा हो, सप्तम में मंगल हो, सूर्य से दूसरे भाव में शनि हो तो अंगहीन योग बनता है। जिस की कुंडली में यह योग होता है किसी दुर्घटना में उसके अंग कट जाते हैं।

8. अपकीर्ति योग
यदि दशम स्थान में सूर्य और शनि एक साथ हो और इन पर राहु-केतु की दृष्टि पड़ रही हो तो अपकीर्ति योग का निर्माण होता है। इस योग वाले की बुरी छवि बनती है। इसे हर प्रकार से अपयश मिलता है और इसके परिजन ही इसके खिलाफ हो जाते हैं।

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