
Kidneys Failing Symptoms: किडनी हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं। किडनी ही है जो ब्लड से विषाक्त पदार्थों को फिल्टर करने, शरीर में लिक्विड का संतुलन बनाए रखने और सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम जैसे आवश्यक खनिजों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इतना ही नहीं जब हमारी किडनी ठीक से काम नहीं कर पाती या उसमें खराबी आती है तो ये हमें कई साइन देती है, जिन्हें समय रहते पहचानना जरूरी है। डॉक्टर्स के मुताबिक किडनी की बीमारी के शुरुआती लक्षणों की पहचान कर बीमारी को धीमा किया जा सकता है और लंबे समय तक इससे हेल्दी जीवन जिया जा सकता है। यहां जानें किडनी फेल होने के 7 शुरुआती लक्षण।
किडनी जब सही से काम नहीं कर पाती है तो शरीर में टॉक्सिन जमा हो सकते हैं, जिससे लगातार थकान और कमजोरी महसूस होती है। इसके अलावा, किडनी की बीमारियां एनीमिया का कारण बन सकती हैं, जो थकान की भावना को और बढ़ा देती हैं।
हमारी बॉडी में मूत्र पैटर्न भी काफी कुछ हिंट करता है। पेशाब में बदलाव, किडनी की बीमारी के सबसे स्पष्ट शुरुआती संकेतों में से एक है। इसमें पेशाब की मात्रा में वृद्धि, विशेषकर रात में (नोक्टूरिया), गहरे रंग का मूत्र, मूत्र में झाग या बुलबुले आना या फिर मूत्र में रक्त आना। ये सभी किडनी खराब होने के संकेत हैं।
किडनी की कार्य करने की क्षमता में कमी से शरीर में जैसा कि हम जान चुके हैं ज्यादा तरल पदार्थ जमा होने लग जाता है। जिससे पैरों, टखनों, चेहरे और हाथों में सूजन हो सकती है। ऐसे में यही आपके साथ ऐसा होता है तो इसे हल्के में ना लें।
शरीर में विषाक्त पदार्थों के जमा होने से भूख में कमी आने लगती है। इसकी वजह से लगातार वजन घटने लगता है और बॉडी में आगे लगतर पोषण की कमी हो सकती है।
अगर बॉडी में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन हो रहा है- जैसे कि कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर में लगातार बदलाव तो ये मांसपेशियों में ऐंठन का कारण बन सकते हैं।
जिन लोगों को सांस लेने में कठिनाई होती है वो भी सावधान रहें। किडनी की कार्यक्षमता में कमी से शरीर में अतिरिक्त तरल पदार्थ जमा हो सकता है, जिससे फेफड़ों में तरल भर सकता है और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
किडनी की समस्याओं के कारण शरीर में अपशिष्ट पदार्थों का जमा होना त्वचा में खुजली और सूखापन का कारण बन सकता है। साथ ही किडनी की कार्यक्षमता में कमी से मस्तिष्क में विषाक्त पदार्थों का स्तर बढ़ सकता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और मानसिक थकान हो सकती है।
किडनी की बीमारी के लिए नियमित रूप से eGFR (अनुमानित ग्लोमेरुलर फ़िल्ट्रेशन रेट) और UACR (मूत्र एल्बुमिन-से-क्रिएटिनिन अनुपात) की जांच करवाना आवश्यक है। इन टेस्ट से किडनी की कार्यक्षमता का मूल्यांकन किया जा सकता है और समय रहते उपचार शुरू किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि eGFR 75 mL/min/1.73 m² है, तो उपचार शुरू करने से किडनी फेल होने में 15 वर्षों से अधिक की देरी हो सकती है।
रेगूलर चेकअप: यदि आपके घर में हाई बीपी, मधुमेह या किडनी की बीमारी की हिस्ट्री रही है, तो नियमित रूप से किडनी की जांच करवाएं।
हेल्दी डाइट: नमक और प्रोटीन की मात्रा को नियंत्रित करें और पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
दवाओं का सावधानी से उपयोग: बिना डॉक्टर की सलाह के दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक सेवन न करें, क्योंकि ये किडनी को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
फिजिकल एक्टिविटी: नियमित व्यायाम करें और हेल्दी वजन बनाए रखें।