प्लास्टिक में खाना खाते हैं तो जान लें इसके खतरनाक साइड इफेक्ट

रोज़ाना प्लास्टिक में खाना खाने से पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक वीर्य को नष्ट कर सकते हैं और सेक्स हार्मोन उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं।

rohan salodkar | Published : Oct 13, 2024 12:03 PM IST

क्या आप स्विगी या ज़ोमैटो से रोटी, कुलचा, पनीर बटर मसाला मंगवाते हैं? वो प्लास्टिक या एल्युमिनियम फॉइल में लपेटकर आता है। रास्ते के किसी होटल से इडली, चटनी, सांभर पैक करवाकर घर ले जाते हैं। वो भी प्लास्टिक में पैक करके देता है। स्वादिष्ट तो लगता है, कोई दिक्कत नहीं। लेकिन रोज़ाना ऐसे ही प्लास्टिक में खाना खाते हैं?

इसके अलावा, क्या आप पैक्ड फ़ूड भी खाते हैं? यानी प्लास्टिक रैपर में पैक चिप्स, कुरकुरे, वगैरह। ये भी रोज़ खाते हैं? अगर हाँ, तो आपकी मर्दानगी को खतरा है।

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यह सच है। कई सालों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है। टोक्यो विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने माइक्रोप्लास्टिक के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। इन्होंने आँतों, पेट और गुर्दों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों पर ज़ोर दिया है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि खाने के साथ, न दिखने वाले सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक पेट में जाकर हमारी सेक्सुअल क्षमता पर बुरा असर डालते हैं।

पुरुषों में, ये वीर्य को नष्ट कर सकते हैं। यानी अंडकोष में मौजूद वीर्य उत्पादन ग्रंथियों में ये जमा होकर वीर्य की गति को कम करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक न्यूरोएंडोक्राइन सिस्टम को बाधित कर सकते हैं। यह सेक्स हार्मोन उत्पादन को प्रभावित करता है। ये पुरुषों में रक्त-अंडकोष की दीवार को बाधित कर सकते हैं। इससे वीर्य उत्पादन कमज़ोर होता है।

महिलाओं में, ये माइक्रोप्लास्टिक अंडाशय के क्षरण और एंडोमेट्रियल हाइपरप्लासिया का कारण बन सकते हैं। यानी अंडाशय में अंडों का उत्पादन ठीक से नहीं हो पाता। इससे अंडे विकृत हो सकते हैं। वीर्य के साथ मिलकर गर्भधारण नहीं हो पाएगा या हुआ भी तो विकलांग बच्चा पैदा हो सकता है।

प्लास्टिक में मौजूद थैलेट्स, बिस्फेनॉल ए (BPA) और अन्य एंडोक्राइन-बाधित करने वाले रसायन (EDC) आपके शरीर के हार्मोन उत्पादन और कार्य में बाधा डाल सकते हैं। ये रसायन प्लास्टिक, सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों और रूम फ्रेशनर में पाए जाते हैं।

आमतौर पर पर्यावरण में कम मात्रा में होने पर भी, लोग रोज़ाना कई EDC के संपर्क में आते हैं। एक व्यक्ति जितना ज़्यादा प्लास्टिक यौगिकों और EDC के संपर्क में आता है, उसके शरीर और प्रजनन पर उतना ही ज़्यादा संभावित प्रभाव पड़ता है। यानी उसकी सेक्सुअल क्षमता कम होती जाती है। महिलाओं में भी ऐसा ही होता है।

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